1. ज्ञानेंद्रियों से अभिप्राय उन इंद्रियों से है जो हमें बाहरी दुनिया के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद करती हैं। ये इंद्रियाँ हमारी संवेदनाओं को संज्ञान में परिवर्तित करती हैं। पांच मुख्य ज्ञानेंद्रियाँ निम्नलिखित हैं: 1. दृष्टि (नेत्र/आंखें): यह इंद्रिय हमें देखने और रंग, आकार, दूरी आदि के बारRead more

    ज्ञानेंद्रियों से अभिप्राय उन इंद्रियों से है जो हमें बाहरी दुनिया के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद करती हैं। ये इंद्रियाँ हमारी संवेदनाओं को संज्ञान में परिवर्तित करती हैं। पांच मुख्य ज्ञानेंद्रियाँ निम्नलिखित हैं:
    1. दृष्टि (नेत्र/आंखें): यह इंद्रिय हमें देखने और रंग, आकार, दूरी आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद करती है।
    2. श्रवण (कान): यह इंद्रिय हमें सुनने और ध्वनियों, आवाज़ों, संगीत, और अन्य श्रवण संकेतों को समझने में मदद करती है।
    3. स्पर्श (त्वचा): यह इंद्रिय हमें स्पर्श, तापमान, दबाव, और दर्द के अनुभव को महसूस करने में मदद करती है।
    4. स्वाद (जीभ): यह इंद्रिय हमें विभिन्न स्वादों जैसे मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा, और उमामी को पहचानने में मदद करती है।
    5. गंध (नाक): यह इंद्रिय हमें विभिन्न गंधों और खुशबुओं को पहचानने में मदद करती है।
    इन पाँच ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से हम अपने आसपास के पर्यावरण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं और उसी के आधार पर अपनी प्रतिक्रियाएँ निर्धारित करते हैं।

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  2. खाने-पीने से पहले हाथों को अच्छी तरह धोना कई कारणों से महत्वपूर्ण है: 1. स्वास्थ्य की सुरक्षा: हमारे हाथों पर कई प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस और अन्य रोगाणु हो सकते हैं, जो भोजन के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और बीमारियों का कारण बन सकते हैं। हाथ धोने से इन हानिकारक रोगाणुओं को हटानेRead more

    खाने-पीने से पहले हाथों को अच्छी तरह धोना कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
    1. स्वास्थ्य की सुरक्षा: हमारे हाथों पर कई प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस और अन्य रोगाणु हो सकते हैं, जो भोजन के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और बीमारियों का कारण बन सकते हैं। हाथ धोने से इन हानिकारक रोगाणुओं को हटाने में मदद मिलती है।
    2. संक्रमण की रोकथाम: कई संक्रामक बीमारियाँ, जैसे कि डायरिया, हेपेटाइटिस ए, और अन्य पेट संबंधी समस्याएँ, गंदे हाथों के कारण फैल सकती हैं। नियमित रूप से हाथ धोने से इन बीमारियों के फैलने की संभावना कम हो जाती है।
    3. स्वच्छता और स्वच्छता बनाए रखना: साफ हाथ रखने से न केवल आपका स्वास्थ्य अच्छा रहता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित होता है कि आपके द्वारा उपयोग किए जाने वाले बर्तन, भोजन और अन्य वस्तुएं भी स्वच्छ रहें।
    4. रोग प्रतिरोधक क्षमता का समर्थन: जब हम अपने हाथों को धोते हैं, तो हम अपने शरीर को बाहरी रोगाणुओं से लड़ने में मदद करते हैं, जिससे हमारी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।
    5. आदत और अनुशासन: हाथ धोने की आदत हमें व्यक्तिगत स्वच्छता और अनुशासन सिखाती है, जो जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी उपयोगी साबित हो सकती है।

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    • 23
  3. 'श्लेष्मा' एक चिपचिपा, गाढ़ा द्रव होता है जो हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है, जैसे कि नाक, गला, फेफड़े, पेट और आँतों में। श्लेष्मा का मुख्यतः निम्नलिखित कार्य होते हैं: 1. संरक्षण: श्लेष्मा शरीर के आंतरिक सतहों को ढकता है और उन्हें सूखने से बचाता है। यह हमारे श्वसन और पाचन तंत्र की नाRead more

    ‘श्लेष्मा’ एक चिपचिपा, गाढ़ा द्रव होता है जो हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है, जैसे कि नाक, गला, फेफड़े, पेट और आँतों में। श्लेष्मा का मुख्यतः निम्नलिखित कार्य होते हैं:

    1. संरक्षण: श्लेष्मा शरीर के आंतरिक सतहों को ढकता है और उन्हें सूखने से बचाता है। यह हमारे श्वसन और पाचन तंत्र की नाजुक झिल्ली को बाहरी हानिकारक तत्वों से सुरक्षित रखता है।

    2. रोगाणुओं से सुरक्षा: श्लेष्मा में एंटीबॉडी और एंजाइम होते हैं जो बैक्टीरिया, वायरस, और अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय या नष्ट कर सकते हैं। यह हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

    3. धूल और प्रदूषकों को पकड़ना: श्लेष्मा हमारे श्वसन तंत्र में धूल, पराग, और अन्य हानिकारक कणों को पकड़ता है, ताकि वे हमारे फेफड़ों में न पहुँच पाएं। बाद में ये कण शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं, अक्सर छींक या खाँसी के माध्यम से।

    4. स्नेहन: पाचन तंत्र में, श्लेष्मा भोजन के मार्ग को चिकना बनाता है, जिससे भोजन को निगलने और पचाने में मदद मिलती है। यह आँतों के अन्दरूनी हिस्सों को ढककर उन्हें रगड़ से बचाता है।

    5. समुचित कार्यप्रणाली बनाए रखना: श्लेष्मा विभिन्न अंगों और तंत्रों की कार्यप्रणाली को सुचारु बनाए रखने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, श्वसन तंत्र में यह हवा के साथ आने वाले हानिकारक तत्वों को फ़िल्टर करता है और पाचन तंत्र में यह एंजाइम्स और एसिड से आंतों की रक्षा करता है।

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    • 24
  4. हिंदी साहित्य में विभिन्न लेखकों ने शरीर की तुलना दुर्ग (किला) से की है, जिसमें विभिन्न अंग और इंद्रियाँ दुर्ग के विभिन्न हिस्सों के रूप में वर्णित होते हैं। 'अपना पराया' पाठ में, शरीर रूपी दुर्ग की बाहरी दीवार के रूप में त्वचा को कहा गया है। कारण: 1. सुरक्षा प्रदान करना: जैसे एक दुर्ग की बाहरी दीवाRead more

    हिंदी साहित्य में विभिन्न लेखकों ने शरीर की तुलना दुर्ग (किला) से की है, जिसमें विभिन्न अंग और इंद्रियाँ दुर्ग के विभिन्न हिस्सों के रूप में वर्णित होते हैं। ‘अपना पराया’ पाठ में, शरीर रूपी दुर्ग की बाहरी दीवार के रूप में त्वचा को कहा गया है।
    कारण:
    1. सुरक्षा प्रदान करना: जैसे एक दुर्ग की बाहरी दीवार दुश्मनों और आक्रमणों से अंदरूनी हिस्सों की रक्षा करती है, वैसे ही त्वचा हमारे शरीर को बाहरी हानिकारक तत्वों जैसे कि बैक्टीरिया, वायरस, धूल, और प्रदूषण से बचाती है।
    2. संवेदनशीलता: त्वचा स्पर्श, तापमान, दर्द आदि का अनुभव करने में हमारी मदद करती है, जिससे हमें बाहरी वातावरण के बारे में जानकारी मिलती है। यह हमारी सुरक्षा प्रतिक्रिया को भी सक्षम बनाती है।
    3. स्वास्थ्य का संकेतक: त्वचा का रंग, बनावट और उसकी स्थिति हमारे स्वास्थ्य की स्थिति का संकेत देते हैं, ठीक वैसे ही जैसे दुर्ग की दीवारों की स्थिति उसके भीतर के किले की स्थिति का संकेत देती है।

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    • 21
  5. बगल (काँख) या जाँघ में गिलटियों के फूलने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ सामान्य और कुछ गंभीर हो सकते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं: संक्रमण: बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण: शरीर में संक्रमण होने पर, लसीका ग्रंथियाँ (लिम्फ नोड्स) जो काँख और जाँघ में स्थित होती हैं, सूज जाती हैं। यह सूजन शरRead more

    बगल (काँख) या जाँघ में गिलटियों के फूलने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ सामान्य और कुछ गंभीर हो सकते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:
    संक्रमण:
    बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण: शरीर में संक्रमण होने पर, लसीका ग्रंथियाँ (लिम्फ नोड्स) जो काँख और जाँघ में स्थित होती हैं, सूज जाती हैं। यह सूजन शरीर की संक्रमण से लड़ने की प्रक्रिया का हिस्सा होती है।
    त्वचा संक्रमण: काँख या जाँघ में त्वचा पर संक्रमण होने पर भी गिलटियाँ फूल सकती हैं, जैसे कि फोड़े या फुंसियाँ।
    मास्टाइटिस: स्तनपान कराने वाली महिलाओं में स्तन संक्रमण के कारण काँख में सूजन हो सकती है।

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