1. "अंधेर नगरी" की भाषा-शैली सरल, प्रवाहपूर्ण और प्रभावशाली है, जो दर्शकों और पाठकों को सहज ही आकर्षित करती है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है, जिससे पात्रों और घटनाओं का यथार्थवादी चित्रण होता है। व्यंग्यात्मक शैली का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया गया है, जिससे नाटक की सामाजिक औRead more

    “अंधेर नगरी” की भाषा-शैली सरल, प्रवाहपूर्ण और प्रभावशाली है, जो दर्शकों और पाठकों को सहज ही आकर्षित करती है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है, जिससे पात्रों और घटनाओं का यथार्थवादी चित्रण होता है। व्यंग्यात्मक शैली का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया गया है, जिससे नाटक की सामाजिक और राजनीतिक आलोचना अधिक प्रभावी बनती है। संवादों में हास्य और व्यंग्य का समावेश करके उन्होंने गंभीर मुद्दों को भी रोचक और समझने योग्य बनाया है। कुल मिलाकर, “अंधेर नगरी” की भाषा-शैली सरलता, सहजता और व्यंग्यात्मकता का उत्कृष्ट मिश्रण है।

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  2. (ग) ‘टके सेर भाजी टके सेर खाजा’ में निहित व्यंग्यार्थ है- गुणों और मूल्यों की कदर नहीं है।

    (ग) ‘टके सेर भाजी टके सेर खाजा’ में निहित व्यंग्यार्थ है- गुणों और मूल्यों की कदर नहीं है।

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  3. (क) इस नाटक में ‘अंधेर नगरी और चौपट्ट राजा’ की कल्पना का कारण ब्रिटिश शासन की सीधे तौर पर आलोचना न कर पाने की स्थिति है।

    (क) इस नाटक में ‘अंधेर नगरी और चौपट्ट राजा’ की कल्पना का कारण ब्रिटिश शासन की सीधे तौर पर आलोचना न कर पाने की स्थिति है।

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  4. (क) मंच के अनुकूल होना नाटक की सफलता के लिए आवश्यक है। (√) (ख) ‘अंधेर नगरी’ के मंचन में अनावश्यक पात्रों का होना बड़ी बाधा है। (x) (ग) भारतेन्दु ने ‘अंधेर नगरी’ में पर्याप्त रंग-निर्देश दिए हैं। (√) (घ) ‘अंधेर नगरी’ के मंचन के लिए बहुत-से मंचीय साधनों की ज़रूरत है। (√)

    (क) मंच के अनुकूल होना नाटक की सफलता के लिए आवश्यक है। (√)
    (ख) ‘अंधेर नगरी’ के मंचन में अनावश्यक पात्रों का होना बड़ी बाधा है। (x)
    (ग) भारतेन्दु ने ‘अंधेर नगरी’ में पर्याप्त रंग-निर्देश दिए हैं। (√)
    (घ) ‘अंधेर नगरी’ के मंचन के लिए बहुत-से मंचीय साधनों की ज़रूरत है। (√)

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  5. (घ) अंधेर नगरी के बारे में यह सच नहीं है- राजा बहुत न्यायप्रिय है।

    (घ) अंधेर नगरी के बारे में यह सच नहीं है- राजा बहुत न्यायप्रिय है।

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