1. कवि कल्पना करता है कि वे पत्थर तालाब के किनारे पड़े चुपचाप उसका पानी पी रहे हैं। कब से? वर्षों से, शायद जब से तालाब बना, तब से। कवि यहाँ पर तालाब और उसमें स्थित पत्थरों के प्राचीन साहचर्य को व्यक्त करता है। तालाब के पानी में रहने वाली अन्य वस्तुएँ गतिशील हैं, लेकिन पत्थर बिना हिले-डुले उसमें चुपचापRead more

    कवि कल्पना करता है कि वे पत्थर तालाब के किनारे पड़े चुपचाप उसका पानी पी रहे हैं। कब से? वर्षों से, शायद जब से तालाब बना, तब से। कवि यहाँ पर तालाब और उसमें स्थित पत्थरों के प्राचीन साहचर्य को व्यक्त करता है। तालाब के पानी में रहने वाली अन्य वस्तुएँ गतिशील हैं, लेकिन पत्थर बिना हिले-डुले उसमें चुपचाप पड़े हुए हैं। इन्हें देखकर कवि कल्पना करता है कि ये पत्थर पता नहीं कितने समय से चुपचाप तालाब का पानी पी रहे हैं। पानी में डूबे पत्थरों में कवि को झुककर पानी पीते प्राणियों की याद आ रही होगी इसलिए यहाँ पर उसने पत्थरों का सुंदर मानवीकरण किया है। ये पत्थर निरंतर पानी पीने की मुद्रा में ही रहते हैं, इसलिए कवि विस्मय प्रकट करता है कि पता नहीं इनकी प्यास कब बुझेगी।

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  2. 'चंद्रगहना से लौटती बेर' कविता का संदेश और मेरी प्रतिक्रिया: प्रकृति प्रेम: कवि, जयशंकर प्रसाद, प्रकृति के प्रति गहरे प्रेम और श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। वे चांदनी रात में खिली बेर के फूल की सुंदरता का बारीकी से वर्णन करते हैं, जो प्रकृति के चमत्कार और विस्मय का प्रतीक है। नारीत्व का सौंदर्य: कवि,Read more

    ‘चंद्रगहना से लौटती बेर’ कविता का संदेश और मेरी प्रतिक्रिया:
    प्रकृति प्रेम: कवि, जयशंकर प्रसाद, प्रकृति के प्रति गहरे प्रेम और श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। वे चांदनी रात में खिली बेर के फूल की सुंदरता का बारीकी से वर्णन करते हैं, जो प्रकृति के चमत्कार और विस्मय का प्रतीक है।
    नारीत्व का सौंदर्य: कवि, बेर के फूल को एक सुंदर नारी के रूप में रूपकित करते हैं। वे उसकी कोमलता, मादकता और आकर्षण का चित्रण करते हैं। चांदनी में नहाया हुआ फूल, स्त्रीत्व की चमक और शोभा का प्रतीक बन जाता है।
    क्षणभंगुरता: कवि, फूल के शीघ्र मुरझाने पर भी ध्यान देते हैं। यह प्रकृति के चक्र और जीवन की क्षणभंगुरता का प्रतीक है। फूल का जीवन संसार की नश्वरता और सौंदर्य की क्षणभंगुरता की याद दिलाता है।
    आशावाद: इसके बावजूद, कविता में आशावाद का संदेश भी निहित है। मुरझाए हुए फूल के स्थान पर नए फूल खिलेंगे, जो जीवन के नवीकरण और सतत परिवर्तन का प्रतीक हैं।
    मैं ‘चंद्रगहना से लौटती बेर’ कविता के संदेश से बहुत प्रभावित हूं। प्रसाद जी ने प्रकृति और स्त्री सौंदर्य का अद्भुत चित्रण किया है। कविता में प्रयुक्त भाषा सरल और सुंदर है, जो भावनाओं को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करती है।
    हालांकि, मैं कविता के क्षणभंगुरता के पहलू से पूरी तरह सहमत नहीं हूं। मेरा मानना है कि यद्यपि जीवन क्षणभंगुर है, फिर भी हम हर पल का आनंद ले सकते हैं और सार्थक जीवन जी सकते हैं।
    कुल मिलाकर, ‘चंद्रगहना से लौटती बेर’ हिंदी साहित्य की एक उत्कृष्ट कृति है जो प्रकृति, सौंदर्य और जीवन के बारे में गहरे विचारों को प्रेरित करती है।

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  3. बगुला समाज के ढोंगी लोगों का प्रतीक है, जो दिखावा कुछ करते हैं और उनका आचरण कुछ और ही होता है। इसलिए कहावत भी है- बगुला भगत ! कविता में भी ढोंगी बगुला धयान लगाकर खड़ा है, किंतु मछली को देखते ही उसे झट पकड़ कर, चट गटक जाता है। चिडि़या के ‘चतुर’ विशेषण पर गौर कीजिए, यह कुछ चालाक लोगों की ओर संकेत करतीRead more

    बगुला समाज के ढोंगी लोगों का प्रतीक है, जो दिखावा कुछ करते हैं और उनका आचरण कुछ और ही होता है। इसलिए कहावत भी है- बगुला भगत ! कविता में भी ढोंगी बगुला धयान लगाकर खड़ा है, किंतु मछली को देखते ही उसे झट पकड़ कर, चट गटक जाता है। चिडि़या के ‘चतुर’ विशेषण पर गौर कीजिए, यह कुछ चालाक लोगों की ओर संकेत करती है। चालाक चिडि़या, मछली को झपट कर उठा लेती है। प्रकृति के ये दृश्य भी समाज के व्यवहार की ओर संकेत करते हैं। समाज में कुछ कपटी, चालाक और धूर्त लोग दूसरों का शोषण करते हैं, किंतु इनकी अधिकता नहीं है। विशेष बात तो यह है कि प्रकृति का प्यार भरा रूप अधिक आकर्षक है।

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  4. साँझ होने को आई है और तालाब की सतह पर चाँद का प्रतिबिंब चमक रहा है। उसकी चमक आँखों को चैंधिाया देती है। चाँद के बारे में कवि की कल्पना देखिए-‘एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’। चाँद के लिए चाँदी का बड़ा-सा, गोल खंभा कहना ठीक है, परंतु क्या आप बता सकते हैं कि चाँद कवि को खंभा क्यों प्रतीत हुआ? जी, हाँ !Read more

    साँझ होने को आई है और तालाब की सतह पर चाँद का प्रतिबिंब चमक रहा है। उसकी चमक आँखों को चैंधिाया देती है। चाँद के बारे में कवि की कल्पना देखिए-‘एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’। चाँद के लिए चाँदी का बड़ा-सा, गोल खंभा कहना ठीक है, परंतु क्या आप बता सकते हैं कि चाँद कवि को खंभा क्यों प्रतीत हुआ? जी, हाँ ! किसी तालाब या पोखर के हिलते जल में चाँद का प्रतिबिंब उसकी गहराई का भी बोधा कराता है जबकि शांत जल में वह एक गोला-सा ही लगता। लहरों वाले तालाब में किरणों के फिसलने से उसमें लंबाई प्रतीत होती है। इसलिए कवि को लगता हैµ‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा।’ µइसे ही कहते हैं कवि की सूक्ष्म दृष्टि और कल्पना।

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  5. प्रकृति का अनुराग भरा आँचल हिल रहा है! यह दृश्य कवि के मन को छू लेता है। उसे लगता है इस ग्रामीण अंचल में किसी नगर की अपेक्षा अधिक प्यार भरा वातावरण है। नगर तो व्यावसायिक हो गए हैं। व्यावसायिक नगरों में प्यार कम उपजता है। ग्रामीण अंचल की भूमि प्रेम-प्यार के लिए अधिाक उपजाऊ है। जैसे कि इस निर्जन अंचलRead more

    प्रकृति का अनुराग भरा आँचल हिल रहा है! यह दृश्य कवि के मन को छू लेता है। उसे लगता है इस ग्रामीण अंचल में किसी नगर की अपेक्षा अधिक प्यार भरा वातावरण है। नगर तो व्यावसायिक हो गए हैं। व्यावसायिक नगरों में प्यार कम उपजता है। ग्रामीण अंचल की भूमि प्रेम-प्यार के लिए अधिाक उपजाऊ है। जैसे कि इस निर्जन अंचल में भी प्रकृति के चप्पे-चप्पे में प्यार दिखाई पड़ रहा है।

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