1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढि़एः लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे उसकी आड़ में स्वार्थ सिद्ध करते हैं। बात यह है कि लोग धर्म को छोड़कर संप्रदाय के जाल में फँसे हैं। संप्रदाय बाह्य कृत्यों पर ज़ोर देते हैं। वे चिह्नों को अपनाकर धर्म के सार-तत्त्व को मसल देते हैं। धर्म मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार कराता है, उसके हृदय के किवाड़ों को खोलता है, उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है। संप्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं। ये हमें जात-पाँत, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेद-भावों से ऊपर नहीं उठने देते। अब निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिएः (क) इस गद्यांश का मूल भाव क्या है ? सही उत्तर पर (√) तथा गलत पर (x) का निशान लगाइएः (i) धर्म की व्याख्या करना (ii) संप्रदाय की व्याख्या करना (iii) धर्म और संप्रदाय का अंतर स्पष्ट करना (iv) धर्म और संप्रदाय दोनों को एक बताना (v) धर्म से संप्रदाय को श्रेष्ठ सिद्ध करना (vi) संप्रदाय से धर्म को अच्छा बताना

    (i) धर्म की व्याख्या करना (√) (ii) संप्रदाय की व्याख्या करना (√) (iii) धर्म और संप्रदाय का अंतर स्पष्ट करना (√) (iv) धर्म और संप्रदाय दोनों को एक बताना (x) (v) धर्म से संप्रदाय को श्रेष्ठ सिद्ध करना (x) (vi) संप्रदाय से धर्म को अच्छा बताना (√)

    (i) धर्म की व्याख्या करना (√)
    (ii) संप्रदाय की व्याख्या करना (√)
    (iii) धर्म और संप्रदाय का अंतर स्पष्ट करना (√)
    (iv) धर्म और संप्रदाय दोनों को एक बताना (x)
    (v) धर्म से संप्रदाय को श्रेष्ठ सिद्ध करना (x)
    (vi) संप्रदाय से धर्म को अच्छा बताना (√)

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  2. (i) लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। (√) (ii) संप्रदाय बाह्य कृत्यों पर ज़ोर देते हैं और धर्म मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार कराता है। (√) (iii) बात यह है कि लोग धर्म को छोड़कर संप्रदाय के जाल में फँस रहे हैं। (√) (iv) वे धर्म के सार-तत्त्व को मसल देते हैं। (√)

    (i) लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। (√)
    (ii) संप्रदाय बाह्य कृत्यों पर ज़ोर देते हैं और धर्म मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार कराता है। (√)
    (iii) बात यह है कि लोग धर्म को छोड़कर संप्रदाय के जाल में फँस रहे हैं। (√)
    (iv) वे धर्म के सार-तत्त्व को मसल देते हैं। (√)

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  3. नीचे दिए गए गद्यांश और उनके सार को ध्यानपूर्वक पढि़ए। गद्यांश का सार लिखते हुए जिन चरणों का उल्लेख किया गया है, वे यहाँ नहीं है। आप इस गद्यांश के सार-लेखन के चरणों को यहाँ लिखिएः गद्यांश -1 कहा जाता है कि मानव का आरंभिक जीवन अधिक लचीला और प्रशिक्षण के लिए विशेषकर अनुकूल होता है। यदि माता-पिता, अध्यापक और सरकार – तीनों मिलकर प्रयास करें, तो वे बालक को जैसा चाहें, वैसा वातावरण देकर उसकी जीवन-दिशा कानिर्धारण कर सकते हैं। जीवन का यह समय मिट्टी के उस कच्चे घड़े के समान होता है, जिसके विकारों को मनचाहे ढंग से ठीक किया जा सकता है। लेकिन जिस तरह पके हुए घड़ों में पाए जाने वाले दोषों में सुधार करना असंभव है, उसी तरह यौवन की दहलीज़ को पार कर बीस-पच्चीस वर्ष के युवक के अंदर आमूल परिवर्तन लाना यदि असंभव नहीं, तो कठिन अवश्य है। कच्ची मिट्टी किसी भी साँचे में ढालकर किसी भी नए रूप में बदली जा सकती है, लेकिन जब वह एक बार, एक प्रकार की बन गयी, तब उसमें परिवर्तन लाने का प्रयास बहुत ही कम सफल हो पाता है। किसी लड़के या लड़की के व्यक्तित्व के निर्माण का मुख्य उत्तरदायित्व हमारे समाज, हमारी सरकार और स्वयं माता-पिता पर है तथा बहुत कुछ स्वयं लड़के या लड़की पर भी। कोई भी व्यक्ति अपने ध्येय में तभी सफल हो सकता है, जब वह अपने जीवन के आरंभिक दिनों में भी वैसा करने का प्रयास करे। इस दृष्टि से विद्याध्ययन का समय ही मानव-जीवन के लिए विशेष महत्त्व रखता है। हम सभी का और स्वयं विद्यार्थियों का भी यही कर्तव्य है कि सभी इस तथ्य को हमेशा अपने सामने रखें। मूल भाव………………………………………………………………………………………………………………… संबंधित बिंदु………………………………………………………………………………………………………….. क्रम………………………………………………………………………………………………………………………… अनावश्यक सामग्री…………………………………………………………………………………………………. (व्याख्या, दोहराव आदि)

    गद्यांश -1 मूल भाव: मानव जीवन का आरंभिक समय अत्यंत लचीला होता है, जिसमें बालक का मानसिक, शारीरिक और नैतिक विकास प्रभावी रूप से किया जा सकता है। इस समय के दौरान माता-पिता, शिक्षक और सरकार मिलकर बालक को उचित वातावरण प्रदान कर उसके व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं। कच्ची मिट्टी की तरह बालक को मनचाहे रRead more

    गद्यांश -1
    मूल भाव:
    मानव जीवन का आरंभिक समय अत्यंत लचीला होता है, जिसमें बालक का मानसिक, शारीरिक और नैतिक विकास प्रभावी रूप से किया जा सकता है। इस समय के दौरान माता-पिता, शिक्षक और सरकार मिलकर बालक को उचित वातावरण प्रदान कर उसके व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं। कच्ची मिट्टी की तरह बालक को मनचाहे रूप में ढाला जा सकता है, लेकिन जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, परिवर्तन करना उतना ही कठिन हो जाता है। इसलिए, जीवन का आरंभिक समय विशेष महत्व रखता है और इस समय का सदुपयोग करना सभी का कर्तव्य है।
    संबंधित बिंदु:
    1. मानव जीवन का आरंभिक समय लचीला और प्रशिक्षण के लिए अनुकूल होता है।
    2. माता-पिता, शिक्षक और सरकार मिलकर बालक को उचित वातावरण देकर उसके जीवन की दिशा तय कर सकते हैं।
    3. जीवन का आरंभिक समय कच्चे घड़े के समान होता है, जिसमें परिवर्तन लाना आसान होता है।
    4. यौवन में प्रवेश के बाद व्यक्तित्व में आमूल परिवर्तन करना कठिन होता है।
    5. बालक के व्यक्तित्व निर्माण का मुख्य उत्तरदायित्व माता-पिता, समाज, सरकार और स्वयं बालक पर होता है।
    6. कोई भी व्यक्ति अपने ध्येय में तभी सफल हो सकता है जब वह जीवन के आरंभिक दिनों से ही प्रयास करे।
    7. विद्याध्ययन का समय मानव जीवन के लिए विशेष महत्व रखता है।
    8. सभी का कर्तव्य है कि इस तथ्य को हमेशा ध्यान में रखें।
    क्रम:
    1. मानव जीवन का आरंभिक समय लचीला और प्रशिक्षण के लिए अनुकूल होना।
    2. माता-पिता, शिक्षक और सरकार की भूमिका।
    3. जीवन के आरंभिक समय की तुलना कच्चे घड़े से।
    4. यौवन में परिवर्तन की कठिनाई।
    5. व्यक्तित्व निर्माण का उत्तरदायित्व।
    6. ध्येय में सफलता के लिए आरंभिक प्रयास की महत्ता।
    7. विद्याध्ययन का विशेष महत्व।
    8. कर्तव्य की जागरूकता।

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  4. नीचे दिए गए गद्यांश और उनके सार को ध्यानपूर्वक पढि़ए। गद्यांश का सार लिखते हुए जिन चरणों का उल्लेख किया गया है, वे यहाँ नहीं है। आप इ गद्यांश के सार-लेखन के चरणों को यहाँ लिखिएः हमारे देश में अशिक्षित प्रौढ़ों की संख्या करोड़ों में है। यदि हम किसी प्रकार इनके मानस-मंदिरों में शिक्षा की ज्योति जगा सकें, तो सबसे महान धार्म और सबसे पवित्र कर्तव्य का पालन होगा। रेलगाड़ी और बिजली की बत्ती से भी अपरिचित लोगों का होना हमारी प्रगति पर कलंक है। प्रौढ़-शिक्षा योजना इनको प्रबुद्ध नागरिक बनाने की दिशा में क्रियाशील है। इस योजना से गाँवों में एक सीमा तक आत्मनिर्भरता आएगी। हर बात के लिए शहरों की ओर ताकने की प्रवृत्ति समाप्त होगी। निरर्थक रूढि़यों और अंधविश्वासों में फँसे हुए और अपनी गाढ़े पसीने की कमाई को नगरों की भेंट चढ़ाने वाले ये हमारे भाई प्रौढ़ शिक्षा से निश्चित ही सचेत और विवेकी बनेंगे। स्वास्थ्य, सफ़ाई, उन्नति, कृषि तथा आपसी सद्भावना के प्रति प्रौढ़ शिक्षा इनको जागरूक बना सकती है। इससे इनकी मेहनत की कमाई डॉक्टरों की जेबों में जाने से और कचहरियों में लुटने से बचेगी। सबसे बड़ा लाभ तो प्रौढ़ शिक्षा द्वारा यह होगा कि करोड़ों लोग नए ढंग से देखने, सुनने और समझने के साथ-साथ अच्छा आचरण करने में समर्थ होंगे। हमारे करोड़ों देशवासी आज भी अशिक्षित और पिछड़े हुए हैं। सारे संसार के सामने हम इस कलंक को सिर झुकाए सह रहे हैं। भारत की उन्नति चंद नगरों को जगमग कर देने से नहीं होगी, उसकी सच्ची उन्नति का पैमाना तो यही ग्राम-समुदाय है जिसकी पढ़ने की आयु निकल चुकी, जो स्वयं पढ़ने के महत्त्व से अपरिचित हैं, जिसका तन-मन-धन नगरीय सभ्यता शताब्दियों से लूटती चली आ रही है। ऐसे अज्ञान और अशिक्षा के अंधकार में जीवन बिताने वाले करोड़ों भाइयों-बहनों के प्रति यदि हम आज सचेत और उत्तरदायी बनने की बात सोच रहे हैं, तो देश का बड़ा सौभाग्य है।

    गद्यांश -2 मूल भाव: अशिक्षित व्यक्ति समाज के लिए कलंक है। प्रौढ़-शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति अपने अधिाकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होंगे, नई दृष्टि से सोचने-समझने की शक्ति भी उनमें उत्पन्न होगी। साथ ही, वे शोषण के शिकार भी नहीं बनेंगे। भारत की उन्नति का अर्थ है -गाँवों की उन्नति। यह तभी संभव है,Read more

    गद्यांश -2
    मूल भाव:
    अशिक्षित व्यक्ति समाज के लिए कलंक है। प्रौढ़-शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति अपने अधिाकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होंगे, नई दृष्टि से सोचने-समझने की शक्ति भी उनमें उत्पन्न होगी। साथ ही, वे शोषण के शिकार भी नहीं बनेंगे। भारत की उन्नति का अर्थ है -गाँवों की उन्नति। यह तभी संभव है, जब वहाँ के अधिक-से-अधिक नागरिक शिक्षित हों। प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रम ही इसका एकमात्र उपचार है। इसे सफल बनाना हम सबका कर्तव्य है। इससे देश का गौरव बढ़ेगा।
    संबंधित बिंदु:
    1. हमारे देश में करोड़ों अशिक्षित प्रौढ़ हैं।
    2. प्रौढ़ शिक्षा का महत्त्व और उसका धार्मिक और पवित्र कर्तव्य।
    3. अशिक्षित प्रौढ़ों का होना हमारी प्रगति पर कलंक है।
    4. प्रौढ़ शिक्षा योजना का उद्देश्य।
    5. गाँवों में आत्मनिर्भरता और शहरों पर निर्भरता की समाप्ति।
    6. निरर्थक रूढ़ियों और अंधविश्वासों से मुक्ति।
    7. प्रौढ़ शिक्षा से स्वास्थ्य, सफाई, उन्नति, कृषि और आपसी सद्भावना के प्रति जागरूकता।
    8. अशिक्षा के अंधकार में जीवन बिताने वालों के प्रति उत्तरदायित्व।
    9. ग्राम-समुदाय की उन्नति ही देश की सच्ची उन्नति का पैमाना है।
    क्रम:
    1. देश में करोड़ों अशिक्षित प्रौढ़ों की संख्या।
    2. प्रौढ़ शिक्षा का महत्व और धार्मिक तथा पवित्र कर्तव्य।
    3. अशिक्षित प्रौढ़ों का होना हमारी प्रगति पर कलंक।
    4. प्रौढ़ शिक्षा योजना का उद्देश्य और उसकी दिशा।
    5. गाँवों में आत्मनिर्भरता लाना।
    6. निरर्थक रूढ़ियों और अंधविश्वासों से मुक्ति।
    7. प्रौढ़ शिक्षा से स्वास्थ्य, सफाई, उन्नति, कृषि और आपसी सद्भावना के प्रति जागरूकता।
    8. अशिक्षा के अंधकार में जीवन बिताने वालों के प्रति उत्तरदायित्व।
    9. ग्राम-समुदाय की उन्नति को देश की सच्ची उन्नति मानना।
    अनावश्यक सामग्री:
    1. “रेलगाड़ी और बिजली की बत्ती से भी अपरिचित लोगों का होना हमारी प्रगति पर कलंक है।”
    2. “अपनी गाढ़े पसीने की कमाई को नगरों की भेंट चढ़ाने वाले ये हमारे भाई।”
    3. “उनकी मेहनत की कमाई डॉक्टरों की जेबों में जाने से और कचहरियों में लुटने से बचेगी।”
    4. “आज भी अशिक्षित और पिछड़े हुए हैं।”
    5. “सारे संसार के सामने हम इस कलंक को सिर झुकाए सह रहे हैं।”
    6. “भारत की उन्नति चंद नगरों को जगमग कर देने से नहीं होगी।”
    7. “जिसकी पढ़ने की आयु निकल चुकी, जो स्वयं पढ़ने के महत्त्व से अपरिचित हैं।”
    8. “नगर सभ्यता शताब्दियों से लूटती चली आ रही है।”

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  5. निम्नलिखित अंश का सार-लेखन एक तिहाई शब्दों में कीजिएः सभ्यता और संस्कृति के विकास में धर्म और विज्ञान का हाथ रहता है। धर्म ने मनुष्य के मन में सुधाार किया है और विज्ञान ने संस्कृति को जीता है। धर्म हमारे मन को बल देता है और सत्य, अहिंसा, परोपकार, संयम आदि सभी अच्छे गुण धर्म के कारण हैं। धर्म हृदय में पैदा होता है। विज्ञान प्रकृति को जीतता है जबकि धर्म सत्य, अहिंसा, परोपकार आदि से मन को जीतता है। इसीलिए यदि धर्म और विज्ञान मिलकर काम करें, तो वह दिन दूर नहीं, जब हम केवल राज्यों और देशों से अपने को जोड़ने की संकुचित प्रवृत्ति को छोड़ देंगे और समस्त संसार को अपना समझने लगेंगे।

    सभ्यता और संस्कृति के विकास में धर्म और विज्ञान का हाथ रहता है। धर्म ने मनुष्य के मन में सुधाार किया है और विज्ञान ने संस्कृति को जीता है। धर्म हमारे मन को बल देता है और सत्य, अहिंसा, परोपकार, संयम आदि सभी अच्छे गुण धर्म के कारण हैं। धर्म हृदय में पैदा होता है। विज्ञान प्रकृति को जीतता है जबकि धर्मRead more

    सभ्यता और संस्कृति के विकास में धर्म और विज्ञान का हाथ रहता है। धर्म ने मनुष्य के मन में सुधाार किया है और विज्ञान ने संस्कृति को जीता है। धर्म हमारे मन को बल देता है और सत्य, अहिंसा, परोपकार, संयम आदि सभी अच्छे गुण धर्म के कारण हैं। धर्म हृदय में पैदा होता है। विज्ञान प्रकृति को जीतता है जबकि धर्म सत्य, अहिंसा, परोपकार आदि से मन को जीतता है। इसीलिए यदि धर्म और विज्ञान मिलकर काम करें, तो वह दिन दूर नहीं, जब हम केवल राज्यों और देशों से अपने को जोड़ने की संकुचित प्रवृत्ति को छोड़ देंगे और समस्त संसार को अपना समझने लगेंगे।

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