राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान, कक्षा 10, हिंदी, अध्याय 16, अपना-पराया
श्लेष्मा एक फिसलाऊ जलीय स्राव है, जो श्लेष्म ग्रंथियों द्वारा निर्मित होता है। इसका मुख्य कार्य श्वसन, पाचन, और मूत्रजननांगी प्रणालियों की सुरक्षा करना है। यह उपकला कोशिकाओं को रोगजनक जैसे बैक्टीरिया और वायरस से बचाता है, साथ ही आंतरिक अंगों को चिकनाई प्रदान करता है। श्लेष्मा में रोगाणुरोधी तत्व भी होते हैं, जो संक्रमण के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं।
‘श्लेष्मा’ एक चिपचिपा, गाढ़ा द्रव होता है जो हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है, जैसे कि नाक, गला, फेफड़े, पेट और आँतों में। श्लेष्मा का मुख्यतः निम्नलिखित कार्य होते हैं:
1. संरक्षण: श्लेष्मा शरीर के आंतरिक सतहों को ढकता है और उन्हें सूखने से बचाता है। यह हमारे श्वसन और पाचन तंत्र की नाजुक झिल्ली को बाहरी हानिकारक तत्वों से सुरक्षित रखता है।
2. रोगाणुओं से सुरक्षा: श्लेष्मा में एंटीबॉडी और एंजाइम होते हैं जो बैक्टीरिया, वायरस, और अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय या नष्ट कर सकते हैं। यह हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
3. धूल और प्रदूषकों को पकड़ना: श्लेष्मा हमारे श्वसन तंत्र में धूल, पराग, और अन्य हानिकारक कणों को पकड़ता है, ताकि वे हमारे फेफड़ों में न पहुँच पाएं। बाद में ये कण शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं, अक्सर छींक या खाँसी के माध्यम से।
4. स्नेहन: पाचन तंत्र में, श्लेष्मा भोजन के मार्ग को चिकना बनाता है, जिससे भोजन को निगलने और पचाने में मदद मिलती है। यह आँतों के अन्दरूनी हिस्सों को ढककर उन्हें रगड़ से बचाता है।
5. समुचित कार्यप्रणाली बनाए रखना: श्लेष्मा विभिन्न अंगों और तंत्रों की कार्यप्रणाली को सुचारु बनाए रखने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, श्वसन तंत्र में यह हवा के साथ आने वाले हानिकारक तत्वों को फ़िल्टर करता है और पाचन तंत्र में यह एंजाइम्स और एसिड से आंतों की रक्षा करता है।