NIOS Class 10 Hindi Chapter 4 आह्वान
“पाठ पौरुष का पढ़ो” कथन से कवि का आशय है कि लोगों को आलस्य और भाग्यवाद को त्यागकर साहस और पराक्रम का अभ्यास करना चाहिए। यह संदेश देता है कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानना और उसे सक्रिय करना आवश्यक है। केवल भाग्य पर निर्भर रहने के बजाय, हमें अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
अगर अपने दुखों से मुक्ति पाना चाहते हो तो उठो और सफलता की चोटी छूने के लिए चल पड़ो। सफलता पाने अर्थात्
जीवन में कुछ सार्थक या अच्छा काम करने के लिए चलना ही पड़ता है, परिश्रम करना ही पड़ता है। अब भाग्य के बदलने या परिस्थितियाँ सुधाारने की प्रतीक्षा में बैठे रहना छोड़ो। केवल कर्म या पुरुषार्थ के मार्ग पर चलो क्योंकि परिस्थितियाँ अपने आप नहीं बदलतीं, उन्हें मनुष्य अपने उद्यम से बदलता है। भारतीयों के मन में फैली हुई निराशा और आलसीपन को देखकर कवि को दुख होता है। देशवासियों का उद्बोधन करते हुए कवि एक उदाहरण देते हुए कहता है- तुम जानते हो कि सामने रखा निवाला भी अपने-आप मुँह में नहीं जाता, उसके लिए प्रयास करना पड़ता है यानी हाथ बढ़ाकर उसे उठाना होता है।