नीचे दिए गए गद्यांश और उनके सार को ध्यानपूर्वक पढि़ए। गद्यांश का सार लिखते हुए जिन चरणों का उल्लेख किया गया है, वे यहाँ नहीं है। आप इस गद्यांश के सार-लेखन के चरणों को यहाँ लिखिएः गद्यांश -1 कहा जाता है कि मानव का आरंभिक जीवन अधिक लचीला और प्रशिक्षण के लिए विशेषकर अनुकूल होता है। यदि माता-पिता, अध्यापक और सरकार – तीनों मिलकर प्रयास करें, तो वे बालक को जैसा चाहें, वैसा वातावरण देकर उसकी जीवन-दिशा कानिर्धारण कर सकते हैं। जीवन का यह समय मिट्टी के उस कच्चे घड़े के समान होता है, जिसके विकारों को मनचाहे ढंग से ठीक किया जा सकता है। लेकिन जिस तरह पके हुए घड़ों में पाए जाने वाले दोषों में सुधार करना असंभव है, उसी तरह यौवन की दहलीज़ को पार कर बीस-पच्चीस वर्ष के युवक के अंदर आमूल परिवर्तन लाना यदि असंभव नहीं, तो कठिन अवश्य है। कच्ची मिट्टी किसी भी साँचे में ढालकर किसी भी नए रूप में बदली जा सकती है, लेकिन जब वह एक बार, एक प्रकार की बन गयी, तब उसमें परिवर्तन लाने का प्रयास बहुत ही कम सफल हो पाता है। किसी लड़के या लड़की के व्यक्तित्व के निर्माण का मुख्य उत्तरदायित्व हमारे समाज, हमारी सरकार और स्वयं माता-पिता पर है तथा बहुत कुछ स्वयं लड़के या लड़की पर भी। कोई भी व्यक्ति अपने ध्येय में तभी सफल हो सकता है, जब वह अपने जीवन के आरंभिक दिनों में भी वैसा करने का प्रयास करे। इस दृष्टि से विद्याध्ययन का समय ही मानव-जीवन के लिए विशेष महत्त्व रखता है। हम सभी का और स्वयं विद्यार्थियों का भी यही कर्तव्य है कि सभी इस तथ्य को हमेशा अपने सामने रखें। मूल भाव………………………………………………………………………………………………………………… संबंधित बिंदु………………………………………………………………………………………………………….. क्रम………………………………………………………………………………………………………………………… अनावश्यक सामग्री…………………………………………………………………………………………………. (व्याख्या, दोहराव आदि)
गद्यांश -1
मूल भाव:
मानव जीवन का आरंभिक समय अत्यंत लचीला होता है, जिसमें बालक का मानसिक, शारीरिक और नैतिक विकास प्रभावी रूप से किया जा सकता है। इस समय के दौरान माता-पिता, शिक्षक और सरकार मिलकर बालक को उचित वातावरण प्रदान कर उसके व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं। कच्ची मिट्टी की तरह बालक को मनचाहे रूप में ढाला जा सकता है, लेकिन जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, परिवर्तन करना उतना ही कठिन हो जाता है। इसलिए, जीवन का आरंभिक समय विशेष महत्व रखता है और इस समय का सदुपयोग करना सभी का कर्तव्य है।
संबंधित बिंदु:
1. मानव जीवन का आरंभिक समय लचीला और प्रशिक्षण के लिए अनुकूल होता है।
2. माता-पिता, शिक्षक और सरकार मिलकर बालक को उचित वातावरण देकर उसके जीवन की दिशा तय कर सकते हैं।
3. जीवन का आरंभिक समय कच्चे घड़े के समान होता है, जिसमें परिवर्तन लाना आसान होता है।
4. यौवन में प्रवेश के बाद व्यक्तित्व में आमूल परिवर्तन करना कठिन होता है।
5. बालक के व्यक्तित्व निर्माण का मुख्य उत्तरदायित्व माता-पिता, समाज, सरकार और स्वयं बालक पर होता है।
6. कोई भी व्यक्ति अपने ध्येय में तभी सफल हो सकता है जब वह जीवन के आरंभिक दिनों से ही प्रयास करे।
7. विद्याध्ययन का समय मानव जीवन के लिए विशेष महत्व रखता है।
8. सभी का कर्तव्य है कि इस तथ्य को हमेशा ध्यान में रखें।
क्रम:
1. मानव जीवन का आरंभिक समय लचीला और प्रशिक्षण के लिए अनुकूल होना।
2. माता-पिता, शिक्षक और सरकार की भूमिका।
3. जीवन के आरंभिक समय की तुलना कच्चे घड़े से।
4. यौवन में परिवर्तन की कठिनाई।
5. व्यक्तित्व निर्माण का उत्तरदायित्व।
6. ध्येय में सफलता के लिए आरंभिक प्रयास की महत्ता।
7. विद्याध्ययन का विशेष महत्व।
8. कर्तव्य की जागरूकता।