sripal
  • 0

निम्नलिखित दोहे का भाव स्पष्ट करते हुए अपनी टिप्पणी कीजिएः निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करत सुभाय।।

  • 0

कबीर जी के इस दोहे का भाव यह है कि आलोचक हमारी कमियों को सामने लाकर हमें सुधारने में मदद करता है। उसकी निंदा से हमें अपनी गलतियों का एहसास होता है और हम बेहतर बनने की कोशिश करते हैं। इसलिए, निंदक को दूर भगाने की बजाय उसे अपने पास रखने में ही लाभ है, क्योंकि वह हमें लगातार सुधारने और निखारने का काम करता है।

Share

1 Answer

  1. यह दोहा हमें सिखाता है कि आलोचना और निंदा को नकारात्मक रूप से नहीं, बल्कि सकारात्मक रूप से ग्रहण करना चाहिए। आलोचक हमें हमारे अंदर मौजूद कमियों को पहचानने और उनमें सुधार करने का मौका देते हैं।
    जैसे दर्पण हमारा प्रतिबिंब दिखाकर हमें सुंदर बनाने में मदद करता है, वैसे ही आलोचक भी हमारे चरित्र को निखारने में सहायक होते हैं। हमें सदैव खुले विचारों वाले रहना चाहिए और आलोचना को आत्म-सुधार का साधन समझना चाहिए।
    यह दोहा हमें सच्चे ज्ञान और विनम्रता का मार्ग दिखाता है।

    • 20
Leave an answer

Leave an answer

Browse