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काव्य-सौंदर्य स्पष्ट दीजिए- पर कर्म-तैल बिना कभी विधि-दीप जल सकता नहीं, है दैव क्या? साँचे बिना कुछ आप ढल सकता नहीं।। NIOS Class 10 Hindi Chapter 4

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NIOS Class 10 Hindi Chapter 4 आह्वान

इस कविता में काव्य-सौंदर्य स्पष्ट रूप से कर्म और पुरुषार्थ की महत्ता को दर्शाने में निहित है। रूपक अलंकार का प्रयोग करते हुए कवि ने कर्म को “तेल” और भाग्य को “दीप” के रूप में प्रस्तुत किया है। भाव यह है कि बिना कर्मरूपी तेल के भाग्यरूपी दीप नहीं जल सकता। “साँचा” का प्रतीक यह बताता है कि बिना कर्म या प्रयास के कोई उपलब्धि अपने आप नहीं मिल सकती। कवि की भाषा सरल, प्रभावी और प्रेरणादायक है, जो पाठक को आत्म-निर्भरता का संदेश देती है।

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  1. काव्य-सौंदर्य:
    अलंकार:
    उपमा: “कर्म-तैल” और “विधि-दीप” की उपमा का प्रयोग करके कर्म और भाग्य के बीच संबंध को स्पष्ट रूप से समझाया गया है।
    प्रतीक: “दीप” ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है। “तैल” कर्म का प्रतीक है। “साँचा” भाग्य का प्रतीक है।
    भाषा:
    भाषा सरल और सुबोध है। शब्दों का चयन सटीक और प्रभावशाली है। लय और ताल का प्रयोग प्रभावशाली है।
    भाव:
    कर्म और भाग्य दोनों ही जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं। कर्म के बिना भाग्य का कोई अर्थ नहीं है।
    भाग्य के बिना कर्म भी व्यर्थ है।
    संदेश:
    कर्म पर विश्वास रखें और कठोर परिश्रम करें। भाग्य के प्रति भी सकारात्मक दृष्टिकोण रखें।

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