NIOS Class 10 Hindi Chapter 15
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘अंधेर नगरी’ नाटक को लिखने का उद्देश्य अंग्रेज़ी शासन के दौरान भारत की सामाजिक और राजनीतिक दुर्दशा को उजागर करना था। इस नाटक में उन्होंने न्याय और व्यवस्था की कमी को व्यंग्यात्मक रूप से प्रस्तुत किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कैसे अंग्रेज़ों की नीतियों ने देश को अराजकता में धकेल दिया। नाटक के पात्रों के माध्यम से उन्होंने लालच, मूर्खता और अन्याय के परिणामों को दर्शाया, ताकि दर्शक इस अंधेर नगरी की असलियत को समझ सकें और जागरूक हो सकें।
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“अंधेर नगरी” नाटक को लिखने के पीछे भारतेंदु हरिश्चंद्र का उद्देश्य तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक व्यवस्था की बुराइयों और विडंबनाओं को उजागर करना था। भारतेंदु ने इस नाटक के माध्यम से कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला। उनके उद्देश्य निम्नलिखित बिंदुओं में स्पष्ट किए जा सकते हैं:
भ्रष्ट शासन व्यवस्था की आलोचना:
नाटक में “अंधेर नगरी चौपट राजा” की अवधारणा के माध्यम से भारतेंदु ने उस समय के शासकों की भ्रष्ट और अव्यवस्थित शासन प्रणाली की आलोचना की है। वे दिखाते हैं कि कैसे एक मूर्ख और विवेकहीन शासक अपनी प्रजा को अराजकता और अन्याय में धकेल देता है।
न्याय व्यवस्था की कमजोरियाँ:
नाटक में दिखाया गया है कि न्याय व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है। निर्दोष लोगों को सजा मिलती है और अपराधी बचे रहते हैं। यह तत्कालीन न्याय प्रणाली की विफलता और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करता है।
सामाजिक विडंबना और अराजकता:
अंधेर नगरी में सभी वस्तुएँ एक ही कीमत पर बिकती हैं, चाहे वे कितनी भी मूल्यवान या सस्ती क्यों न हों। इससे समाज में व्याप्त आर्थिक अराजकता और मूल्य निर्धारण की तर्कहीनता को दर्शाया गया है।
जनता की दुर्दशा:
नाटक में जनता की स्थिति अत्यंत दयनीय दिखाई गई है। वे शासक के अत्याचार और अन्याय के शिकार हैं। इससे भारतेंदु ने दिखाया कि कैसे भ्रष्ट शासन प्रणाली जनता की पीड़ा का कारण बनती है।
व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक सुधार:
भारतेंदु ने व्यंग्य का प्रयोग करके समाज और शासन में व्याप्त बुराइयों को उजागर किया। उनके उद्देश्य थे लोगों को सोचने पर मजबूर करना और सामाजिक सुधार के प्रति प्रेरित करना। वे चाहते थे कि लोग इन बुराइयों को समझें और समाज में सुधार के लिए प्रयास करें।
सच्चाई और विवेक का महत्व:
गोवर्धन बाबा के चरित्र के माध्यम से भारतेंदु ने सच्चाई, विवेक और प्रज्ञा का महत्व बताया। वे दिखाते हैं कि केवल भौतिक वस्तुएँ और सस्ता सामान जीवन में महत्वपूर्ण नहीं होते, बल्कि सही सोच, न्याय और स्थिरता अधिक महत्वपूर्ण हैं।
राष्ट्रीय और सामाजिक जागरूकता:
भारतेंदु का उद्देश्य था राष्ट्रीय और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देना। वे चाहते थे कि लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत हों और भ्रष्ट और अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ आवाज उठाएं।