राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान, कक्षा 10, हिंदी, अध्याय 6, भारत की ये बहादुर बेटियाँ
लड़के और लड़की में भेद करना बिल्कुल अनुचित है। लड़कियां भी लड़कों के समान क्षमतावान होती हैं और हर क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं। भेदभाव से समाज का विकास रुकता है और प्रतिभाएं दब जाती हैं। समान अवसर देकर हम समाज को सशक्त बना सकते हैं। यह सोच बदलने की जरूरत है कि कोई कार्य केवल लड़कों के लिए उपयुक्त है। समानता और सम्मान से ही एक प्रगतिशील समाज का निर्माण संभव है।
लड़के और लड़की में भेदभाव: अनुचित और हानिकारक
मेरी दृष्टि में, लड़के और लड़की में भेदभाव करना पूरी तरह से अनुचित और हानिकारक है। यह न केवल अनैतिक है, बल्कि यह समाज के विकास को भी बाधित करता है।
यहाँ कुछ तर्क दिए गए हैं जो मेरी बात का समर्थन करते हैं:
समानता का अधिकार: भारत का संविधान सभी नागरिकों को, चाहे वे लड़के हों या लड़कियां, समान अधिकार और अवसर प्रदान करता है। लिंग के आधार पर भेदभाव करना इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
अन्याय: लड़के और लड़कियां दोनों ही मनुष्य हैं और उनमें समान क्षमताएं और प्रतिभाएं होती हैं। किसी भी लिंग को कमतर समझना और उसे अवसरों से वंचित रखना अन्यायपूर्ण है।
विकास में बाधा: लिंग भेदभाव समाज के समग्र विकास में बाधा डालता है। जब लड़कियों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार के अवसरों से वंचित रखा जाता है, तो वे अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाती हैं। इससे न केवल उनका जीवन प्रभावित होता है, बल्कि पूरे समाज का भी नुकसान होता है।
हिंसा और उत्पीड़न: लिंग भेदभाव अक्सर हिंसा और उत्पीड़न का कारण बनता है। लड़कियों को यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और बाल विवाह जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
सामाजिक बुराइयां: लिंग भेदभाव दहेज प्रथा, बाल विवाह और नरसंहार जैसी सामाजिक बुराइयों को जन्म देता है।
निष्कर्ष: लड़के और लड़की में भेदभाव एक पुरानी और हानिकारक प्रथा है। हमें इसे समाप्त करने के लिए मिलकर प्रयास करने चाहिए। शिक्षा, जागरूकता और सकारात्मक सोच के माध्यम से हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहाँ लड़कों और लड़कियों को समान अवसर और सम्मान मिले।