1. बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। उनका जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व में नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था। उनका मूल नाम सिद्धार्थ गौतम था, और वे शाक्य वंश के राजकुमार थे। गौतम बुद्ध ने सत्य की खोज में अपना राजसी जीवन त्याग दिया और कठोर तपस्या के बाद ज्ञान (बोधि) प्राप्त किया। इसके बाद वे "बुद्ध" कहलाए, जिRead more

    बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। उनका जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व में नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था। उनका मूल नाम सिद्धार्थ गौतम था, और वे शाक्य वंश के राजकुमार थे।

    गौतम बुद्ध ने सत्य की खोज में अपना राजसी जीवन त्याग दिया और कठोर तपस्या के बाद ज्ञान (बोधि) प्राप्त किया। इसके बाद वे “बुद्ध” कहलाए, जिसका अर्थ है “जाग्रत” या “ज्ञान प्राप्त करने वाला।”

    उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया, जो बौद्ध धर्म के मुख्य सिद्धांत हैं।

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  2. जैन धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है, क्योंकि यह एक प्राचीन धर्म है जो समय-समय पर विभिन्न तीर्थंकरों द्वारा विकसित और प्रचारित किया गया। हालाँकि, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, भगवान महावीर (599 ईसा पूर्व – 527 ईसा पूर्व) को अक्सर इसका संस्थापक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने जैन धर्म को सुव्यवस्थित और लRead more

    जैन धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है, क्योंकि यह एक प्राचीन धर्म है जो समय-समय पर विभिन्न तीर्थंकरों द्वारा विकसित और प्रचारित किया गया।
    हालाँकि, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, भगवान महावीर (599 ईसा पूर्व – 527 ईसा पूर्व) को अक्सर इसका संस्थापक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने जैन धर्म को सुव्यवस्थित और लोकप्रिय बनाया।
    महावीर का जन्म वैशाली के पास कुंडलपुर (वर्तमान में बिहार) में हुआ था। उनका मूल नाम वर्धमान था। उन्होंने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों को महत्व दिया और इन्हें जीवन का मार्गदर्शक बनाया।
    महावीर से पहले, जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भी महत्वपूर्ण थे, जिनके उपदेशों को महावीर ने और विकसित किया।

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  3. जैन धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है, क्योंकि यह एक प्राचीन धर्म है जो समय-समय पर विभिन्न तीर्थंकरों द्वारा विकसित और प्रचारित किया गया। हालाँकि, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, भगवान महावीर (599 ईसा पूर्व – 527 ईसा पूर्व) को अक्सर इसका संस्थापक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने जैन धर्म को सुव्यवस्थित और लRead more

    जैन धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है, क्योंकि यह एक प्राचीन धर्म है जो समय-समय पर विभिन्न तीर्थंकरों द्वारा विकसित और प्रचारित किया गया।
    हालाँकि, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, भगवान महावीर (599 ईसा पूर्व – 527 ईसा पूर्व) को अक्सर इसका संस्थापक माना जाता है, क्योंकि उन्होंने जैन धर्म को सुव्यवस्थित और लोकप्रिय बनाया।
    महावीर का जन्म वैशाली के पास कुंडलपुर (वर्तमान में बिहार) में हुआ था। उनका मूल नाम वर्धमान था। उन्होंने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों को महत्व दिया और इन्हें जीवन का मार्गदर्शक बनाया।
    महावीर से पहले, जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भी महत्वपूर्ण थे, जिनके उपदेशों को महावीर ने और विकसित किया।

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  4. उत्तर वैदिक काल (1000-600 ईसा पूर्व) में मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन थे। लोहे के औजारों के उपयोग से खेती में सुधार हुआ, और धान, जौ, गेहूँ जैसी फसलों की खेती व्यापक रूप से की गई। सिंचाई के साधनों का विकास भी इस काल में हुआ। पशुपालन में गाय, बैल, घोड़े, और बकरियों का पालन महत्वपूर्ण था। गाय को धन औरRead more

    उत्तर वैदिक काल (1000-600 ईसा पूर्व) में मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन थे। लोहे के औजारों के उपयोग से खेती में सुधार हुआ, और धान, जौ, गेहूँ जैसी फसलों की खेती व्यापक रूप से की गई। सिंचाई के साधनों का विकास भी इस काल में हुआ।
    पशुपालन में गाय, बैल, घोड़े, और बकरियों का पालन महत्वपूर्ण था। गाय को धन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता था।
    व्यापार और वस्तु-विनिमय प्रणाली का विकास हुआ, जिसमें धातुओं, कपड़ों और अन्य वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था। समुद्री और स्थल व्यापार का विस्तार हुआ।
    शिल्पकारी और धातुकर्म जैसे कार्य भी उन्नत हुए, जिनमें लोहे, तांबे और सोने का प्रयोग बढ़ा।
    धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों ने ब्राह्मण वर्ग को प्रभावशाली बनाया। युद्ध और सुरक्षा के कारण क्षत्रिय वर्ग का महत्व बढ़ा। इस प्रकार कृषि, पशुपालन, और अन्य शिल्प इस काल के मुख्य व्यवसाय थे।

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  5. अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपनाया। युद्ध की विनाशकारी प्रकृति से विचलित होकर, अशोक ने हिंसा और रक्तपात त्याग दिया। उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं के उपदेशों को अपनाया और शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।

    अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपनाया। युद्ध की विनाशकारी प्रकृति से विचलित होकर, अशोक ने हिंसा और रक्तपात त्याग दिया। उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं के उपदेशों को अपनाया और शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।

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