यह दोहा हमें सिखाता है कि आलोचना और निंदा को नकारात्मक रूप से नहीं, बल्कि सकारात्मक रूप से ग्रहण करना चाहिए। आलोचक हमें हमारे अंदर मौजूद कमियों को पहचानने और उनमें सुधार करने का मौका देते हैं। जैसे दर्पण हमारा प्रतिबिंब दिखाकर हमें सुंदर बनाने में मदद करता है, वैसे ही आलोचक भी हमारे चरित्र को निखारनRead more
यह दोहा हमें सिखाता है कि आलोचना और निंदा को नकारात्मक रूप से नहीं, बल्कि सकारात्मक रूप से ग्रहण करना चाहिए। आलोचक हमें हमारे अंदर मौजूद कमियों को पहचानने और उनमें सुधार करने का मौका देते हैं।
जैसे दर्पण हमारा प्रतिबिंब दिखाकर हमें सुंदर बनाने में मदद करता है, वैसे ही आलोचक भी हमारे चरित्र को निखारने में सहायक होते हैं। हमें सदैव खुले विचारों वाले रहना चाहिए और आलोचना को आत्म-सुधार का साधन समझना चाहिए।
यह दोहा हमें सच्चे ज्ञान और विनम्रता का मार्ग दिखाता है।
इस पंक्ति में, शिष्य को "कुंभ" (मिट्टी का घड़ा) और गुरु को "कुम्हार" (घड़ा बनाने वाला) के रूप में दर्शाया गया है। जैसे कुम्हार घड़े को बनाने के लिए मिट्टी को गढ़ता है, उसी प्रकार गुरु भी शिष्य को ज्ञान और अनुशासन देकर उसे एक बेहतर इंसान बनाता है। "गढि़-गढि़ काढ़ै खोट" का अर्थ है कि गुरु धीरे-धीरे, शRead more
इस पंक्ति में, शिष्य को “कुंभ” (मिट्टी का घड़ा) और गुरु को “कुम्हार” (घड़ा बनाने वाला) के रूप में दर्शाया गया है। जैसे कुम्हार घड़े को बनाने के लिए मिट्टी को गढ़ता है, उसी प्रकार गुरु भी शिष्य को ज्ञान और अनुशासन देकर उसे एक बेहतर इंसान बनाता है।
“गढि़-गढि़ काढ़ै खोट” का अर्थ है कि गुरु धीरे-धीरे, शिष्य के अंदर मौजूद खामियों और अवगुणों को दूर करता है। यह प्रक्रिया कठिन और धीमी हो सकती है, लेकिन गुरु धैर्य और प्रेम के साथ शिष्य को सही दिशा दिखाता है।
इस दोहे में कबीर कहते हैं कि यदि नाव में पानी भरने लगे और घर में पैसे की अधिकता होने लगे, तो समझदारी इसी में है कि दोनों हाथों से उलीचना शुरू कर दीजिए। इस दोहे में धन के अर्थ में ‘दोऊ हाथ उलीचिए’ से अभिप्राय है कि समझदार व्यक्ति को अंजुरी भर-भर कर उसे बाहर कर देना चाहिए अर्थात् दान कर देना चाहिए, क्Read more
इस दोहे में कबीर कहते हैं कि यदि नाव में पानी भरने लगे और घर में पैसे की अधिकता होने लगे, तो समझदारी इसी में है कि दोनों हाथों से उलीचना शुरू कर दीजिए।
इस दोहे में धन के अर्थ में ‘दोऊ हाथ उलीचिए’ से अभिप्राय है कि समझदार व्यक्ति को अंजुरी भर-भर कर उसे बाहर कर देना चाहिए अर्थात् दान कर देना चाहिए, क्योंकि धन की अधिकता अपने साथ ऐसी विकृतियाँ लेकर आती है, जिससे घर का विनाश होना निश्चित होता है।
इस दोहे में, "जड़मति" शब्द का प्रयोग एक ऐसे व्यक्ति के लिए किया गया है जो स्वाभाविक रूप से बुद्धिमान नहीं है, या जिसे सीखने में कठिनाई होती है। हालांकि, यह दोहा हमें सिखाता है कि निरंतर अभ्यास और प्रयासों के द्वारा, कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी मूर्ख क्यों न हो, ज्ञान और समझ प्राप्त कर सकता है।Read more
इस दोहे में, “जड़मति” शब्द का प्रयोग एक ऐसे व्यक्ति के लिए किया गया है जो स्वाभाविक रूप से बुद्धिमान नहीं है, या जिसे सीखने में कठिनाई होती है।
हालांकि, यह दोहा हमें सिखाता है कि निरंतर अभ्यास और प्रयासों के द्वारा, कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी मूर्ख क्यों न हो, ज्ञान और समझ प्राप्त कर सकता है।
“जड़मति” शब्द का प्रयोग यहां केवल यह दर्शाने के लिए किया गया है कि शुरुआत में व्यक्ति की बुद्धि कम है, लेकिन अभ्यास से उसका ज्ञान बढ़ता है।
कबीर दास इस शब्द का प्रयोग यह बताने के लिए करते हैं कि लगातार अभ्यास से साधारण या कम बुद्धि वाला व्यक्ति भी कुशल और समझदार बन सकता है। “जड़मति” से यह भी संकेत मिलता है कि व्यक्ति चाहे कितना भी अज्ञानी या कमजोर हो, निरंतर प्रयास और अभ्यास के बल पर वह अपने ज्ञान और कौशल में वृद्धि कर सकता है। इस दोहे का उद्देश्य यह है कि व्यक्ति अपनी कमियों से निराश न हो, बल्कि अभ्यास के जरिए उन पर विजय प्राप्त करे।
इस पंक्ति में कबीरदास जी मृत्यु की अनिश्चितता पर प्रकाश डाल रहे हैं। वे कहते हैं कि मृत्यु का देवता हमारे बालों को पकड़कर हमें अपने साथ ले जाता है, और हमें नहीं पता कि वह हमें कहाँ मारेगा, घर में या परदेस में। यह पंक्ति हमें जीवन की नश्वरता और मृत्यु की अनिवार्यता का एहसास दिलाती है। यह हमें यह भी सRead more
इस पंक्ति में कबीरदास जी मृत्यु की अनिश्चितता पर प्रकाश डाल रहे हैं। वे कहते हैं कि मृत्यु का देवता हमारे बालों को पकड़कर हमें अपने साथ ले जाता है, और हमें नहीं पता कि वह हमें कहाँ मारेगा, घर में या परदेस में। यह पंक्ति हमें जीवन की नश्वरता और मृत्यु की अनिवार्यता का एहसास दिलाती है। यह हमें यह भी सिखाती है कि हमें हर पल का सदुपयोग करना चाहिए और अच्छे कर्म करने चाहिए, क्योंकि हमें नहीं पता कि कब मृत्यु आ जाएगी।
रहीम कहते हैं कि अपने मन की व्यथा का दूसरों के सामने प्रकट करने का कोई लाभ नहीं है। लोग केवल सुनते हैं और हसंते हैं लेकिन कोई सहायता नहीं करता। इसलिए अपने दुःख को अपने अंतर में छुपा के रखना चाहिए।
रहीम कहते हैं कि अपने मन की व्यथा का दूसरों के सामने प्रकट करने का कोई लाभ नहीं है। लोग केवल सुनते हैं और हसंते हैं लेकिन कोई सहायता नहीं करता। इसलिए अपने दुःख को अपने अंतर में छुपा के रखना चाहिए।
हिंदी की उपभाषाओं का वर्गवार उल्लेख: 1. पूर्वी हिंदी: अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मगही, नेपाली, बंगाली 2. पश्चिमी हिंदी: हरियाणवी, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, सिन्धी 3. मध्यवर्ती हिंदी: खड़ी बोली (आधुनिक हिंदी), ब्रज भाषा, कन्नौजी, बुंदेली, हंसबाज, अवधी के कुछ रूप 4. दक्षिणी हिंदी: मराठी, गुजराती,Read more
हिंदी की उपभाषाओं का वर्गवार उल्लेख:
1. पूर्वी हिंदी:
अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मगही, नेपाली, बंगाली
2. पश्चिमी हिंदी:
हरियाणवी, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, सिन्धी
3. मध्यवर्ती हिंदी:
खड़ी बोली (आधुनिक हिंदी), ब्रज भाषा, कन्नौजी, बुंदेली, हंसबाज, अवधी के कुछ रूप
4. दक्षिणी हिंदी:
मराठी, गुजराती, सिन्धी, कोंकणी,
कुछ अन्य उपभाषाएं:
गढ़वाली
कुमाऊनी
डोगरी
पहाड़ी
छत्तीसगढ़ी
सिक्किमी
यह सूची पूर्ण नहीं है, और हिंदी में अनेक अन्य उपभाषाएं भी बोली जाती हैं।
दोहे में मात्राओं का चिह्न और गणना: जो जल बाढ़ै नाव में घर में बाढ़ै दाम। दोऊ हाथ उलीचिए यही सयानो काम।। पहला चरण: जो: (जो) - 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर) जल: (जल) - 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर) बाढ़ै: (बाढ़ै) - 2 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर) नाव: (नाव) - 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर) में: (में) - 1 मात्रा (ह्रRead more
दोहे में मात्राओं का चिह्न और गणना:
जो जल बाढ़ै नाव में घर में बाढ़ै दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए यही सयानो काम।।
पहला चरण:
जो: (जो) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
जल: (जल) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
बाढ़ै: (बाढ़ै) – 2 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर)
नाव: (नाव) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
में: (में) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
घर: (घर) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
में: (में) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
बाढ़ै: (बाढ़ै) – 2 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर)
दाम: (दाम) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
कुल मात्राएँ: 11
दूसरा चरण:
दोऊ: (दोऊ) – 2 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर)
हाथ: (हाथ) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
उलीचिए: (उलीचिए) – 3 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर + दीर्घ स्वर)
यही: (यही) – 2 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर)
सयानो: (सयानो) – 3 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर + दीर्घ स्वर)
काम: (काम) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
कुल मात्राएँ: 10
कुल मिलाकर:
इस दोहे में कुल 21 मात्राएँ हैं।
इस दोहे में, आँखों को "निर्मल आरसी" (निर्दोष दर्पण) के रूप में दर्शाया गया है। जैसे दर्पण हमारे चेहरे पर मौजूद हर दाग-धब्बे को दिखाता है, वैसे ही आँखें भी हमारे दिल की सच्ची भावनाओं को प्रकट कर देती हैं। आँखें प्रेम, स्नेह, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, आदि सभी भावनाओं को व्यक्त करती हैं। एक बार, मैं एक ऐसेRead more
इस दोहे में, आँखों को “निर्मल आरसी” (निर्दोष दर्पण) के रूप में दर्शाया गया है।
जैसे दर्पण हमारे चेहरे पर मौजूद हर दाग-धब्बे को दिखाता है, वैसे ही आँखें भी हमारे दिल की सच्ची भावनाओं को प्रकट कर देती हैं। आँखें प्रेम, स्नेह, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, आदि सभी भावनाओं को व्यक्त करती हैं।
एक बार, मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिला जो बहुत ही मिलनसार और दयालु लग रहा था। लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब चमक थी, जो मुझे संदेहास्पद लगी। कुछ समय बाद, मुझे पता चला कि वह व्यक्ति वास्तव में कपटी था और उसके इरादे बुरे थे। यह अनुभव मुझे सिखा गया कि आँखें कितनी सच्ची होती हैं और हमें उन पर भरोसा करना चाहिए।
निम्नलिखित दोहे का भाव स्पष्ट करते हुए अपनी टिप्पणी कीजिएः निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करत सुभाय।।
यह दोहा हमें सिखाता है कि आलोचना और निंदा को नकारात्मक रूप से नहीं, बल्कि सकारात्मक रूप से ग्रहण करना चाहिए। आलोचक हमें हमारे अंदर मौजूद कमियों को पहचानने और उनमें सुधार करने का मौका देते हैं। जैसे दर्पण हमारा प्रतिबिंब दिखाकर हमें सुंदर बनाने में मदद करता है, वैसे ही आलोचक भी हमारे चरित्र को निखारनRead more
यह दोहा हमें सिखाता है कि आलोचना और निंदा को नकारात्मक रूप से नहीं, बल्कि सकारात्मक रूप से ग्रहण करना चाहिए। आलोचक हमें हमारे अंदर मौजूद कमियों को पहचानने और उनमें सुधार करने का मौका देते हैं।
See lessजैसे दर्पण हमारा प्रतिबिंब दिखाकर हमें सुंदर बनाने में मदद करता है, वैसे ही आलोचक भी हमारे चरित्र को निखारने में सहायक होते हैं। हमें सदैव खुले विचारों वाले रहना चाहिए और आलोचना को आत्म-सुधार का साधन समझना चाहिए।
यह दोहा हमें सच्चे ज्ञान और विनम्रता का मार्ग दिखाता है।
गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढि़-गढि़ काढ़ै खोट- पंक्ति में गढि़-गढि़ काढ़ै खोट का आशय स्पष्ट कीजिए। गुरु-शिष्य के संबंध का आदर्श रूप क्या है?
इस पंक्ति में, शिष्य को "कुंभ" (मिट्टी का घड़ा) और गुरु को "कुम्हार" (घड़ा बनाने वाला) के रूप में दर्शाया गया है। जैसे कुम्हार घड़े को बनाने के लिए मिट्टी को गढ़ता है, उसी प्रकार गुरु भी शिष्य को ज्ञान और अनुशासन देकर उसे एक बेहतर इंसान बनाता है। "गढि़-गढि़ काढ़ै खोट" का अर्थ है कि गुरु धीरे-धीरे, शRead more
इस पंक्ति में, शिष्य को “कुंभ” (मिट्टी का घड़ा) और गुरु को “कुम्हार” (घड़ा बनाने वाला) के रूप में दर्शाया गया है। जैसे कुम्हार घड़े को बनाने के लिए मिट्टी को गढ़ता है, उसी प्रकार गुरु भी शिष्य को ज्ञान और अनुशासन देकर उसे एक बेहतर इंसान बनाता है।
See less“गढि़-गढि़ काढ़ै खोट” का अर्थ है कि गुरु धीरे-धीरे, शिष्य के अंदर मौजूद खामियों और अवगुणों को दूर करता है। यह प्रक्रिया कठिन और धीमी हो सकती है, लेकिन गुरु धैर्य और प्रेम के साथ शिष्य को सही दिशा दिखाता है।
जो जल बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़ै दाम।। दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम।। – इस दोहे में धन के अर्थ में ‘दोऊ हाथ उलीचिए’ से क्या अभिप्राय है? NIOS Class 10 Hindi Chapter 2
इस दोहे में कबीर कहते हैं कि यदि नाव में पानी भरने लगे और घर में पैसे की अधिकता होने लगे, तो समझदारी इसी में है कि दोनों हाथों से उलीचना शुरू कर दीजिए। इस दोहे में धन के अर्थ में ‘दोऊ हाथ उलीचिए’ से अभिप्राय है कि समझदार व्यक्ति को अंजुरी भर-भर कर उसे बाहर कर देना चाहिए अर्थात् दान कर देना चाहिए, क्Read more
इस दोहे में कबीर कहते हैं कि यदि नाव में पानी भरने लगे और घर में पैसे की अधिकता होने लगे, तो समझदारी इसी में है कि दोनों हाथों से उलीचना शुरू कर दीजिए।
See lessइस दोहे में धन के अर्थ में ‘दोऊ हाथ उलीचिए’ से अभिप्राय है कि समझदार व्यक्ति को अंजुरी भर-भर कर उसे बाहर कर देना चाहिए अर्थात् दान कर देना चाहिए, क्योंकि धन की अधिकता अपने साथ ऐसी विकृतियाँ लेकर आती है, जिससे घर का विनाश होना निश्चित होता है।
करत-करत अभ्यास तें… दोहे में मूर्ख के लिए जड़मति शब्द का प्रयोग क्यों किया गया? NIOS Class 10 Hindi Chapter 2
इस दोहे में, "जड़मति" शब्द का प्रयोग एक ऐसे व्यक्ति के लिए किया गया है जो स्वाभाविक रूप से बुद्धिमान नहीं है, या जिसे सीखने में कठिनाई होती है। हालांकि, यह दोहा हमें सिखाता है कि निरंतर अभ्यास और प्रयासों के द्वारा, कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी मूर्ख क्यों न हो, ज्ञान और समझ प्राप्त कर सकता है।Read more
इस दोहे में, “जड़मति” शब्द का प्रयोग एक ऐसे व्यक्ति के लिए किया गया है जो स्वाभाविक रूप से बुद्धिमान नहीं है, या जिसे सीखने में कठिनाई होती है।
See lessहालांकि, यह दोहा हमें सिखाता है कि निरंतर अभ्यास और प्रयासों के द्वारा, कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी मूर्ख क्यों न हो, ज्ञान और समझ प्राप्त कर सकता है।
“जड़मति” शब्द का प्रयोग यहां केवल यह दर्शाने के लिए किया गया है कि शुरुआत में व्यक्ति की बुद्धि कम है, लेकिन अभ्यास से उसका ज्ञान बढ़ता है।
कबीर दास इस शब्द का प्रयोग यह बताने के लिए करते हैं कि लगातार अभ्यास से साधारण या कम बुद्धि वाला व्यक्ति भी कुशल और समझदार बन सकता है। “जड़मति” से यह भी संकेत मिलता है कि व्यक्ति चाहे कितना भी अज्ञानी या कमजोर हो, निरंतर प्रयास और अभ्यास के बल पर वह अपने ज्ञान और कौशल में वृद्धि कर सकता है। इस दोहे का उद्देश्य यह है कि व्यक्ति अपनी कमियों से निराश न हो, बल्कि अभ्यास के जरिए उन पर विजय प्राप्त करे।
निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम शब्द छाँटकर लिखिएः कुल, सुरा, गुरु, कुम्हार, कुंभ, निदंक, सुभाय, जल, घर, हाथ, काम, पावस, मौन, खून, प्रीति, जहान।
ऊपर दिए गए शब्दों में से निम्नलिखित शब्द तत्सम शब्द हैं: कुल, गुरु, कुंभ, निंदक, सुभाय, जल, घर, हाथ, काम, पावस, मौन, जहान।
ऊपर दिए गए शब्दों में से निम्नलिखित शब्द तत्सम शब्द हैं:
See lessकुल, गुरु, कुंभ, निंदक, सुभाय, जल, घर, हाथ, काम, पावस, मौन, जहान।
निम्नलिखित दोहे को धयानपूर्वक पढि़ए और पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिएः कबिरा गर्व न कीजिए, काल गहे कर केस। क्या जानौं कित मारिहै, क्या घर क्या परदेस।। काल गहे कर केस का अर्थ स्पष्ट कीजिए। NIOS Class 10 Hindi Chapter 2
इस पंक्ति में कबीरदास जी मृत्यु की अनिश्चितता पर प्रकाश डाल रहे हैं। वे कहते हैं कि मृत्यु का देवता हमारे बालों को पकड़कर हमें अपने साथ ले जाता है, और हमें नहीं पता कि वह हमें कहाँ मारेगा, घर में या परदेस में। यह पंक्ति हमें जीवन की नश्वरता और मृत्यु की अनिवार्यता का एहसास दिलाती है। यह हमें यह भी सRead more
इस पंक्ति में कबीरदास जी मृत्यु की अनिश्चितता पर प्रकाश डाल रहे हैं। वे कहते हैं कि मृत्यु का देवता हमारे बालों को पकड़कर हमें अपने साथ ले जाता है, और हमें नहीं पता कि वह हमें कहाँ मारेगा, घर में या परदेस में। यह पंक्ति हमें जीवन की नश्वरता और मृत्यु की अनिवार्यता का एहसास दिलाती है। यह हमें यह भी सिखाती है कि हमें हर पल का सदुपयोग करना चाहिए और अच्छे कर्म करने चाहिए, क्योंकि हमें नहीं पता कि कब मृत्यु आ जाएगी।
See lessनिम्नलिखित दोहे को धयानपूर्वक पढि़ए और पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिएः निम्नलिखित दोहे को धयानपूर्वक पढि़ए और पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिएः रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय। सुन इठलैहैं लोग सब, बाँट न लइहै कोय।। मन की व्यथा को छिपाकर क्यों रखना चाहिए? NIOS Class 10 Hindi Chapter 2
रहीम कहते हैं कि अपने मन की व्यथा का दूसरों के सामने प्रकट करने का कोई लाभ नहीं है। लोग केवल सुनते हैं और हसंते हैं लेकिन कोई सहायता नहीं करता। इसलिए अपने दुःख को अपने अंतर में छुपा के रखना चाहिए।
रहीम कहते हैं कि अपने मन की व्यथा का दूसरों के सामने प्रकट करने का कोई लाभ नहीं है। लोग केवल सुनते हैं और हसंते हैं लेकिन कोई सहायता नहीं करता। इसलिए अपने दुःख को अपने अंतर में छुपा के रखना चाहिए।
See lessहिंदी की उपभाषाओं का वर्गवार उल्लेख कीजिए। NIOS Class 10 Hindi Chapter 2
हिंदी की उपभाषाओं का वर्गवार उल्लेख: 1. पूर्वी हिंदी: अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मगही, नेपाली, बंगाली 2. पश्चिमी हिंदी: हरियाणवी, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, सिन्धी 3. मध्यवर्ती हिंदी: खड़ी बोली (आधुनिक हिंदी), ब्रज भाषा, कन्नौजी, बुंदेली, हंसबाज, अवधी के कुछ रूप 4. दक्षिणी हिंदी: मराठी, गुजराती,Read more
हिंदी की उपभाषाओं का वर्गवार उल्लेख:
See less1. पूर्वी हिंदी:
अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मगही, नेपाली, बंगाली
2. पश्चिमी हिंदी:
हरियाणवी, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, सिन्धी
3. मध्यवर्ती हिंदी:
खड़ी बोली (आधुनिक हिंदी), ब्रज भाषा, कन्नौजी, बुंदेली, हंसबाज, अवधी के कुछ रूप
4. दक्षिणी हिंदी:
मराठी, गुजराती, सिन्धी, कोंकणी,
कुछ अन्य उपभाषाएं:
गढ़वाली
कुमाऊनी
डोगरी
पहाड़ी
छत्तीसगढ़ी
सिक्किमी
यह सूची पूर्ण नहीं है, और हिंदी में अनेक अन्य उपभाषाएं भी बोली जाती हैं।
नीचे दिए गए दोहे में हृस्व और दीर्घ का चिह्न अंकित करके मात्रााएँ गिनिएः जो जल बाढ़ै नाव में घर में बाढ़ै दाम। दोऊ हाथ उलीचिए यही सयानो काम।। NIOS Class 10 Hindi Chapter 2
दोहे में मात्राओं का चिह्न और गणना: जो जल बाढ़ै नाव में घर में बाढ़ै दाम। दोऊ हाथ उलीचिए यही सयानो काम।। पहला चरण: जो: (जो) - 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर) जल: (जल) - 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर) बाढ़ै: (बाढ़ै) - 2 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर) नाव: (नाव) - 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर) में: (में) - 1 मात्रा (ह्रRead more
दोहे में मात्राओं का चिह्न और गणना:
See lessजो जल बाढ़ै नाव में घर में बाढ़ै दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए यही सयानो काम।।
पहला चरण:
जो: (जो) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
जल: (जल) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
बाढ़ै: (बाढ़ै) – 2 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर)
नाव: (नाव) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
में: (में) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
घर: (घर) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
में: (में) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
बाढ़ै: (बाढ़ै) – 2 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर)
दाम: (दाम) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
कुल मात्राएँ: 11
दूसरा चरण:
दोऊ: (दोऊ) – 2 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर)
हाथ: (हाथ) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
उलीचिए: (उलीचिए) – 3 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर + दीर्घ स्वर)
यही: (यही) – 2 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर)
सयानो: (सयानो) – 3 मात्राएँ (दीर्घ स्वर + ह्रस्व स्वर + दीर्घ स्वर)
काम: (काम) – 1 मात्रा (ह्रस्व स्वर)
कुल मात्राएँ: 10
कुल मिलाकर:
इस दोहे में कुल 21 मात्राएँ हैं।
निम्नलिखित दोहे में निहित भाव-सौंदर्य का उल्लेख करते हुए अपने अनुभव के आधाार पर प्रस्तुत कीजिएः नैना देत बताय सब, हिय को हेत-अहेत। जैसे निर्मल आरसी, भली-बुरी कहि देत।। NIOS Class 10 Hindi Chapter 2
इस दोहे में, आँखों को "निर्मल आरसी" (निर्दोष दर्पण) के रूप में दर्शाया गया है। जैसे दर्पण हमारे चेहरे पर मौजूद हर दाग-धब्बे को दिखाता है, वैसे ही आँखें भी हमारे दिल की सच्ची भावनाओं को प्रकट कर देती हैं। आँखें प्रेम, स्नेह, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, आदि सभी भावनाओं को व्यक्त करती हैं। एक बार, मैं एक ऐसेRead more
इस दोहे में, आँखों को “निर्मल आरसी” (निर्दोष दर्पण) के रूप में दर्शाया गया है।
See lessजैसे दर्पण हमारे चेहरे पर मौजूद हर दाग-धब्बे को दिखाता है, वैसे ही आँखें भी हमारे दिल की सच्ची भावनाओं को प्रकट कर देती हैं। आँखें प्रेम, स्नेह, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, आदि सभी भावनाओं को व्यक्त करती हैं।
एक बार, मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिला जो बहुत ही मिलनसार और दयालु लग रहा था। लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब चमक थी, जो मुझे संदेहास्पद लगी। कुछ समय बाद, मुझे पता चला कि वह व्यक्ति वास्तव में कपटी था और उसके इरादे बुरे थे। यह अनुभव मुझे सिखा गया कि आँखें कितनी सच्ची होती हैं और हमें उन पर भरोसा करना चाहिए।