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लोभ पाप का मूल है, लोभ मिटावत मान। लोभ कभी नहिं कीजिए, या में नरक निदान।। महंत का यह कथन जितना अंधेर नगरी नाटक के संदर्भ में प्रासंगिक है, क्या उतना ही हमारे जीवन में भी है- पक्ष या विपक्ष में तर्क सहित लिखिए।

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NIOS Class 10 Hindi Chapter 15

महंत का यह कथन अंधेर नगरीनाटक में और हमारे जीवन में भी अत्यंत प्रासंगिक है। पक्ष में कहा जा सकता है कि लोभ व्यक्ति को नैतिकता से दूर ले जाता है और उसके निर्णयों को भ्रष्ट करता है, जिससे समाज में अन्याय और असमानता बढ़ती है। लोभ के कारण व्यक्ति अपने स्वार्थ में इतना डूब जाता है कि वह दूसरों की भलाई की परवाह नहीं करता। इसके विपरीत, विपक्ष में कुछ लोग तर्क कर सकते हैं कि लोभ कभी-कभी प्रेरणा का स्रोत भी बन सकता है, जिससे व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित होता है। हालांकि, दीर्घकालिक दृष्टिकोण से, लोभ का नकारात्मक प्रभाव अधिक महत्वपूर्ण है।

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  1. पक्ष में तर्क:
    महंत का कथन “लोभ पाप का मूल है, लोभ मिटावत मान। लोभ कभी नहिं कीजिए, या में नरक निदान।” जितना “अंधेर नगरी” नाटक के संदर्भ में प्रासंगिक है, उतना ही हमारे जीवन में भी है। यह कथन निम्नलिखित कारणों से प्रासंगिक है:
    नैतिक पतन:
    लोभ मानव नैतिकता को कमजोर करता है। लालच में पड़कर लोग अनैतिक कार्य करने लगते हैं, जिससे समाज में भ्रष्टाचार और अन्याय बढ़ता है। यह “अंधेर नगरी” में भी देखा गया, जहां लोभ और लालच ने शासन व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया।
    असंतोष और अशांति:
    लोभ से मनुष्य कभी संतुष्ट नहीं होता और हमेशा अधिक पाने की इच्छा रखता है। इससे मानसिक अशांति और जीवन में असंतोष पैदा होता है। यह हमारे जीवन में भी सत्य है, जहां लोभ के कारण हम मानसिक और भावनात्मक शांति खो देते हैं।
    समाज में अस्थिरता:
    लोभ समाज में असमानता और अस्थिरता लाता है। जो लोग अधिक संपत्ति और शक्ति प्राप्त करने के लिए लालची होते हैं, वे समाज के कमजोर वर्गों का शोषण करते हैं। “अंधेर नगरी” में भी लोभ ने समाज को अराजकता की ओर धकेल दिया।
    आध्यात्मिक हानि:
    लोभ आध्यात्मिक विकास में बाधा डालता है। यह मनुष्य को सत्कर्म और धार्मिकता से दूर ले जाता है। महंत का यह कथन इसीलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि लोभ के त्याग से ही हम सही अर्थों में धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन जी सकते हैं।
    पारिवारिक और सामाजिक संबंध:
    लोभ परिवार और सामाजिक संबंधों में दरार डालता है। लालच के कारण लोग अपने ही परिवार और मित्रों के प्रति अनैतिक कार्य कर सकते हैं। यह हमारे जीवन में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना “अंधेर नगरी” में।
    विपक्ष में तर्क:
    हालांकि महंत का यह कथन अधिकांशतः सही है, लेकिन यह तर्क दिया जा सकता है कि जीवन में कुछ हद तक लोभ (या महत्वाकांक्षा) आवश्यक भी है।
    प्रगति और विकास:
    कुछ मात्रा में महत्वाकांक्षा (या लोभ) लोगों को कड़ी मेहनत करने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। यह व्यक्तिगत और सामूहिक प्रगति के लिए आवश्यक हो सकती है।
    प्रतिस्पर्धा और नवाचार:
    व्यवसाय और तकनीकी क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा और नवाचार लोभ के कारण ही संभव हो पाते हैं। लोग नए-नए आविष्कार और सुधार करने के लिए प्रेरित होते हैं ताकि वे अधिक लाभ कमा सकें।
    संसाधनों का सही उपयोग:
    लोभ कभी-कभी संसाधनों का सही उपयोग करने और अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरित करता है। इससे आर्थिक विकास और सामाजिक समृद्धि में योगदान हो सकता है।

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