राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान, कक्षा 10, हिंदी, अध्याय 4, आह्वान
मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964) एक प्रमुख हिंदी कवि हैं, जिन्हें खड़ी बोली के विकास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीयता, मानवता और सांस्कृतिक समन्वय का संदेश दिया। उनकी प्रमुख कृतियों में “साकेत,” “भारत-भारती,” और “पंचवटी” शामिल हैं। महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से नवाजा। गुप्त जी का काव्य लोक जीवन, धार्मिक नैतिकता और सामाजिक जागरूकता से ओतप्रोत है, जो आज भी प्रासंगिक है।
इस कविता में जीवन के संघर्षों से निराश हो चुके लोगों से कवि कहते हैं- अपने मन को निराश मत करो। कुछ काम करो। कुछ ऐसा काम करो जिससे इस विश्व में नाम हो। तुम्हारे जीवन का क्या उद्देश्य है उसे समझो। बैठे बैठे अपने जीवन की यूं ना गवाओ। अच्छा काम हमेश लाभ ही पहुँचाता है। निराश होकर यूं ना बैठो बल्कि और सपनों की दुनिया से बाहर निकालो और कुछ काम करो।
ये पंक्तियाँ कविता की प्रथम चार पंक्तियों से मिलती जुलती हैं।