राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान, कक्षा 10, हिंदी, अध्याय 14, बूढ़ी पृथ्वी का दुख
मनुष्य का प्रकृति-विरोधी व्यवहार, जैसे वनों की कटाई, प्रदूषण, और प्राकृतिक संसाधनों का अति-दोहन, अंततः मानव-विरोधी बन जाता है। यह व्यवहार पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित करता है, जिससे जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं और स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं। स्वच्छ जल, शुद्ध वायु और उपजाऊ भूमि जैसे जीवन के आवश्यक संसाधन समाप्त हो रहे हैं। इसका परिणाम भविष्य की पीढ़ियों के लिए गंभीर संकट और अस्तित्व के खतरे के रूप में सामने आता है। इस प्रकार, प्रकृति-विरोधी आचरण स्वयं मानव के लिए हानिकारक सिद्ध होता है।
मनुष्य का प्रकृति-विरोधी व्यवहार वास्तव में मानव-विरोधी व्यवहार क्यों कहा जा सकता है, इसका उल्लेख निम्नलिखित बिंदुओं में किया गया है:
स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव: प्रकृति के विनाश से वायु, जल और मिट्टी का प्रदूषण होता है, जो मनुष्यों के स्वास्थ्य पर सीधा नकारात्मक प्रभाव डालता है। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न बीमारियाँ, श्वसन समस्याएँ और जल जनित रोग इसी का परिणाम हैं।
भविष्य की पीढ़ियों के लिए खतरा: प्राकृतिक संसाधनों का अति-दोहन और पर्यावरण का विनाश भविष्य की पीढ़ियों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। यह उनके लिए स्वच्छ जल, हवा और स्वस्थ जीवन की संभावनाओं को कम करता है।
जीवन की गुणवत्ता में गिरावट: प्रकृति के विनाश से प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का ह्रास होता है, जिससे मानव जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। हरियाली और स्वच्छ वातावरण मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं।
आर्थिक नुकसान: प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, सूखा, और तूफान, जो मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रहे हैं, बड़े आर्थिक नुकसान का कारण बनते हैं। इससे जीवन और संपत्ति की हानि होती है और आर्थिक स्थिरता प्रभावित होती है।
पारिस्थितिकी तंत्र का असंतुलन: मानवजनित गतिविधियों से पारिस्थितिकी तंत्र का असंतुलन होता है, जिससे कई प्रजातियों का विलुप्त होना और खाद्य श्रृंखला का टूटना शामिल है। यह स्थिति मानव अस्तित्व के लिए भी खतरा उत्पन्न कर सकती है, क्योंकि हम भी इसी पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं।
नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी: मनुष्य का प्रकृति-विरोधी व्यवहार नैतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अनुचित है। पर्यावरण का संरक्षण और उसकी देखभाल हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। इसे अनदेखा करना मानवता के मूल्यों के विरुद्ध है।
निष्कर्ष:
मनुष्य के प्रकृति-विरोधी व्यवहार को मानव-विरोधी व्यवहार इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि इसका सीधा और घातक प्रभाव स्वयं मानव समाज पर पड़ता है। यह वर्तमान और भविष्य दोनों को प्रभावित करता है, जिससे मानव जीवन के अस्तित्व, स्वास्थ्य और गुणवत्ता पर गंभीर खतरे उत्पन्न होते हैं। अतः पर्यावरण संरक्षण न केवल प्रकृति के लिए बल्कि मानवता की भलाई के लिए भी आवश्यक है।