राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान, कक्षा 10, हिंदी, अध्याय 18, नाखून क्यों बढ़ते हैं?
भारतीय संस्कृति में ‘स्व’ के बंधन को आवश्यक माना जाता है क्योंकि यह व्यक्ति की पहचान और आत्मसम्मान को बनाए रखता है। ‘स्व’ का अर्थ है स्वयं की पहचान, जो सामाजिक और पारिवारिक संबंधों में महत्वपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए, विवाह के समय जाति और परिवार की परंपराओं का पालन करना न केवल व्यक्तिगत पहचान को दर्शाता है, बल्कि समाज में सामंजस्य और एकता को भी बढ़ावा देता है। इस प्रकार, ‘स्व’ के बंधन से व्यक्ति अपने मूल्यों और संस्कृति से जुड़ा रहता है, जो उसकी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझने में मदद करता है।
भारतीय संस्कृति में ‘स्व’ के बंधन को आवश्यक माना गया है क्योंकि यह आत्म-अनुशासन, नैतिकता, और समाजिक सद्भाव के लिए महत्वपूर्ण है। ‘स्व’ का बंधन हमें हमारे कर्तव्यों और दायित्वों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
उदाहरण के रूप में, भगवद गीता में अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद को देख सकते हैं। अर्जुन युद्ध से पहले मानसिक द्वंद्व में फंस जाता है और अपने स्वजनों के विरुद्ध लड़ने से हिचकिचाता है। श्रीकृष्ण उसे उसके कर्तव्य और धर्म का पालन करने की शिक्षा देते हैं, और बताते हैं कि आत्म-संयम और अनुशासन (स्व बंधन) ही सच्चे योद्धा का धर्म है। यह आत्म-अनुशासन अर्जुन को मानसिक स्पष्टता और दृढ़ता प्रदान करता है, जिससे वह अपने कर्तव्य का पालन कर पाता है।
इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि ‘स्व’ के बंधन से व्यक्ति को अपने कर्तव्यों और नैतिकताओं का पालन करने की प्रेरणा मिलती है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर आवश्यक है। इससे व्यक्ति आत्म-संयम, आत्म-ज्ञान, और आत्म-विकास की ओर अग्रसर होता है, जो भारतीय संस्कृति का मूलभूत सिद्धांत है।