NIOS Class 10 Hindi Chapter 18 नाखून क्यों बढ़ते हैं?
हजारीप्रसाद द्विवेदी की भाषा-शैली में सरलता और गहराई दोनों का समावेश है। उनकी रचनाओं में तत्सम और तद्भव शब्दों का संतुलित प्रयोग होता है, जिससे भाषा शुद्ध और प्रवाहपूर्ण बनती है। उदाहरण के लिए, उनके निबंधों में विचारों की स्पष्टता और गहनता होती है, जैसे “लोक और शास्त्र का समन्वय” वाक्य में वे गहरे विचार को सरलता से प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा, द्विवेदी जी ने उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग किया है, जिससे उनकी भाषा अधिक व्यावहारिक और सहज हो जाती है।
द्विवेदी जी की भाषा में तत्सम शब्दों की प्रधाानता भी मिलती है। जैसे- वृहत्तर, आत्मतोषण, सहजात वृत्ति, वर्तुलाकार, नखदंतावलबी, अधाोगामनी आदि। दूसरी ओर आम बोलचाल के शब्दों के प्रयोग से उन्होंने विषय को सरल, सहज एवं स्पष्ट बना दिया है। जैसे- झगड़े-टंटे, पछाड़ना, अभागे, बेहया। उसी तरह उनकी भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों के भी सुंदर प्रयोग हुए हैं। जैसे- लोहा लेना, कमर कसना, कीचड़ में घसीटना इत्यादि। लेखक निबंधा में अनेक स्थानों पर छोटे-छोटे प्रश्न पूछकर हमारी जिज्ञासा और उत्सुकता को निरंतर बनाए रखता है। जैसे- मेरा मन पूछता है किस ओर? और उनके उत्तर विषय को आगे ही नहीं बढ़ाते बल्कि समस्या का समाधाान भी करते हैं। लेखक शब्दों के प्रयोग में अत्यंत सिद्धहस्त है। उसके कहने का ढंग अनोखा एवं निराला है।