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गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढि़-गढि़ काढ़ै खोट- पंक्ति में गढि़-गढि़ काढ़ै खोट का आशय स्पष्ट कीजिए। गुरु-शिष्य के संबंध का आदर्श रूप क्या है?

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NIOS Class 10 Hindi Chapter 2

इस पंक्ति में “गढि़-गढि़ काढ़ै खोट” का अर्थ है कि जैसे एक कुम्हार मिट्टी के घड़े को सावधानीपूर्वक गढ़ता है और उसमें से खोट या दोष निकालता है, वैसे ही गुरु अपने शिष्य की गलतियों, कमजोरियों और दोषों को सुधारता है। कुम्हार जब घड़ा बनाता है, तो बाहर से हल्के-हल्के थपकी देकर उसका आकार सुधारता है और अंदर से हाथों का दबाव डालकर उसे मजबूत बनाता है। इसी प्रकार, गुरु भी शिष्य की बाहरी और भीतरी कमजोरियों को दूर कर उसे एक संपूर्ण, सशक्त और गुणवान व्यक्ति बनाने का प्रयास करता है।

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  1. इस पंक्ति में, शिष्य को “कुंभ” (मिट्टी का घड़ा) और गुरु को “कुम्हार” (घड़ा बनाने वाला) के रूप में दर्शाया गया है। जैसे कुम्हार घड़े को बनाने के लिए मिट्टी को गढ़ता है, उसी प्रकार गुरु भी शिष्य को ज्ञान और अनुशासन देकर उसे एक बेहतर इंसान बनाता है।
    “गढि़-गढि़ काढ़ै खोट” का अर्थ है कि गुरु धीरे-धीरे, शिष्य के अंदर मौजूद खामियों और अवगुणों को दूर करता है। यह प्रक्रिया कठिन और धीमी हो सकती है, लेकिन गुरु धैर्य और प्रेम के साथ शिष्य को सही दिशा दिखाता है।

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