NIOS Class 10 Hindi Chapter 14 बूढ़ी पृथ्वी का दुख
“नदियों का मुँह ढाँपकर रोना” प्रकृति की पीड़ा और मानवीय संवेदनहीनता का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि नदियां, जो जीवन का स्रोत हैं, मनुष्य के अत्याचारों से आहत हैं। प्रदूषण, अतिक्रमण, और जल का अति-दोहन उनकी स्वच्छता और प्रवाह को बाधित कर रहे हैं। यह उनके अस्तित्व के संकट और मानव के प्रकृति-विरोधी व्यवहार की ओर संकेत करता है। इस रूपक के माध्यम से कवि पर्यावरण संरक्षण और संवेदनशीलता की आवश्यकता पर जोर देते हैं।
सुनना नदियों का मुँह ढाँपकर रोना
देखना हवा का ख़ून की उल्टियाँ करना
महसूस करना पहाड़ का सीना दहलना
बतियाना बूढ़ी पृथ्वी का दुख