NIOS Class 10 Hindi Chapter 2
करत-करत अभ्यास तें, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जात तें, सिल पर परत निसान।।
यह दोहा संत कबीर दास जी का है, जो अभ्यास और निरंतर प्रयास के महत्व को दर्शाता है। इसका अर्थ है कि लगातार अभ्यास करने से मूर्ख या अज्ञानी व्यक्ति भी समझदार और कुशल बन सकता है। जैसे कुएं से पानी खींचने के लिए रस्सी बार-बार पत्थर पर रगड़ती है और धीरे-धीरे उसमें निशान बना देती है, वैसे ही निरंतर प्रयास से कठिन से कठिन कार्य भी संभव हो जाता है।
इस दोहे का उद्देश्य यह बताना है कि यदि कोई व्यक्ति किसी काम को लगन और धैर्य के साथ लगातार करता रहे, तो वह उस काम में कुशलता और सफलता प्राप्त कर सकता है। चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, निरंतर अभ्यास से हर व्यक्ति अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है।
(ग) अभ्यास करने का अर्थ होता है निरंतर कार्य करके उसमें कुशलता पाना।