NIOS Class 10 Hindi Chapter 7 आजादी
ज्ञान, कर्म और बलिदान का पारस्परिक संबंध हमारे परिवेश में स्पष्ट है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक (ज्ञान) अपने छात्रों को शिक्षा देकर उन्हें बेहतर भविष्य के लिए तैयार करता है। यह ज्ञान छात्रों को प्रेरित करता है कि वे मेहनत (कर्म) करें। जब छात्र अपने समुदाय के लिए कुछ करने का निर्णय लेते हैं, तो वे अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए बलिदान भी कर सकते हैं। इस प्रकार, ज्ञान, कर्म और बलिदान एक-दूसरे को सशक्त बनाते हैं।
बिना ज्ञान के, कर्म का परिणाम अधूरा रहता है। ज्ञान के बिना हम अपने कार्यों के परिणामों को समझने में असमर्थ रहते हैं, और इससे हमारे कर्मों में अनियंत्रितता आती है। अगली ओर, कर्म बिना ज्ञान के असमर्थ हो जाता है, क्योंकि अगर हमारे पास सही ज्ञान नहीं है, तो हम ठीक काम कैसे कर सकते हैं, इसे समझने में असमर्थ होते हैं।
ज्ञान के साथ कर्म करने पर ही हम अपने कार्यों के परिणामों को सही रूप से समझते हैं और ठीक क्रम में काम करते हैं। उचित ज्ञान के साथ, हम अपने कर्मों को बेहतर बना सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की संभावना बढ़ा सकते हैं।
बलिदान यहाँ पर उचित मार्गदर्शन और सहायता का प्रतीक है। जब हम अपने ज्ञान और कर्म के माध्यम से समाज की सेवा में अपना योगदान देते हैं, तो हम अपने आप को बलिदान करते हैं। यहाँ, बलिदान का मतलब है कि हम अपने व्यक्तिगत सांसारिक और मानसिक आराम की बजाय समाज के लिए समर्पित हो जाते हैं।
इस प्रकार, ज्ञान, कर्म, और बलिदान एक-दूसरे के साथ परस्परिक रूप से जड़े होते हैं। ज्ञान के साथ कर्म करते हुए हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकते हैं, और बलिदान के माध्यम से हम समाज के लिए सेवा करते हुए आत्म-समर्पण का अनुभव करते हैं।