राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान, कक्षा 10, हिंदी, अध्याय 17, बीती विभावरी जाग री
अधखिले फूल और रस-भरी गगरी में गहरी समानता है, जो जीवन के सौंदर्य और संभावनाओं को दर्शाती है। अधखिला फूल अपनी पूर्णता की ओर बढ़ रहा होता है, जिसमें जीवन की ऊर्जा और विकास की संभावना छिपी होती है। इसी तरह, रस-भरी गगरी भी जीवन के संचित अनुभवों और भावनाओं का प्रतीक है, जो भरे होने के बावजूद एक नई शुरुआत का संकेत देती है। दोनों ही प्रतीकात्मक रूप से जीवन की सुंदरता, उत्साह और संभावनाओं को उजागर करते हैं, जो हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
“बीती विभावरी जाग री” कविता में भोर के समय तारों के डूबने और पक्षियों के कलरव को लेकर कवि ने अनेक कल्पनाएँ की हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
तारों के डूबने:
आकाश में तारे रत्न थे: कवि कल्पना करता है कि आकाश में चमकते हुए तारे रत्नों की तरह थे। भोर होने के साथ ही ये रत्न धीरे-धीरे डूब जाते हैं, जैसे कोई उन्हें समेट रहा हो।
उषा तारों के घड़े डुबो रही है: कवि कल्पना करता है कि उषा, जो सौंदर्य की देवी है, आकाश रूपी पनघट में तारों से भरे घड़े को डुबो रही है। जैसे-जैसे घड़ा डूबता है, तारे भी धीरे-धीरे अदृश्य हो जाते हैं।
अंधेरे की हार हो रही है: कवि कल्पना करता है कि तारों का डूबना अंधेरे की हार का प्रतीक है। भोर होने के साथ ही प्रकाश फैलता है और अंधेरा हट जाता है।
पक्षियों के कलरव:
पक्षी मंगल गीत गा रहे हैं: कवि कल्पना करता है कि पक्षी भोर के आगमन का स्वागत करते हुए मधुर गीत गा रहे हैं। ये गीत प्रकृति के उत्साह और आनंद का प्रतीक हैं।
पक्षी उषा की स्तुति कर रहे हैं: कवि कल्पना करता है कि पक्षी उषा की सुंदरता और भव्यता की स्तुति कर रहे हैं। उनके गीत उषा के प्रति श्रद्धा और भक्ति का भाव व्यक्त करते हैं।
प्रेम का संदेश दे रहे हैं: कवि कल्पना करता है कि पक्षियों का कलरव प्रेम का संदेश दे रहा है। उनके मधुर गीत प्रेम की मिठास और सुंदरता का प्रतीक हैं।