राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान, कक्षा 10, हिंदी, अध्याय 15, अंधेर नगरी
‘अंधेर नगरी’ नाटक में पाचनवाला अपने चूरन बेचते हुए राजा, अधिकारियों और समाज के विभिन्न वर्गों पर व्यंग्य करता है। उसका असली लक्ष्य यह दर्शाना है कि ये लोग अपनी स्वार्थी नीतियों और भ्रष्टाचार के कारण समाज को अराजकता की ओर ले जा रहे हैं। पाचनवाले के संवादों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि शासन व्यवस्था कितनी निकम्मी है, जहाँ न केवल आम जनता का शोषण होता है, बल्कि नेता और प्रशासक भी अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं। इस प्रकार, पाचनवाले का व्यंग्य समाज के सभी स्तरों पर व्याप्त अन्याय और भ्रष्टाचार को उजागर करता है।
“अंधेर नगरी” नाटक में पाचनवाला अपने चूरन बेचते हुए विभिन्न लोगों पर व्यंग्य करता है, और इन व्यंग्यों के माध्यम से भारतेंदु हरिश्चंद्र ने समाज और शासन की बुराइयों को उजागर करने का प्रयास किया है। पाचनवाला निम्नलिखित लोगों का व्यंग्य करता है:
शासक वर्ग:
पाचनवाला शासक वर्ग पर व्यंग्य करता है जो अपनी नीतियों और फैसलों में विवेक और न्याय का पालन नहीं करते। इसके माध्यम से यह दिखाया जाता है कि कैसे सत्ता में बैठे लोग अपनी मूर्खता और भ्रष्टाचार के कारण समाज को अराजकता की ओर धकेलते हैं।
अधिकारियों और न्यायाधीशों:
पाचनवाला न्याय व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और अन्याय पर व्यंग्य करता है। वह उन अधिकारियों और न्यायाधीशों की आलोचना करता है जो न्याय को बेचते हैं और अपने पद का दुरुपयोग करते हैं। इसका असली लक्ष्य यह दिखाना है कि न्याय व्यवस्था कैसे ध्वस्त हो चुकी है और आम जनता के लिए न्याय पाना कितना मुश्किल हो गया है।
धनी और शक्तिशाली लोग:
पाचनवाला समाज के उन धनी और शक्तिशाली लोगों पर भी व्यंग्य करता है जो अपने लोभ और स्वार्थ के लिए अनैतिक कार्य करते हैं। इसका असली लक्ष्य समाज में व्याप्त असमानता और शोषण को उजागर करना है, जहां धनी और शक्तिशाली लोग गरीब और कमजोर वर्गों का शोषण करते हैं।
आम जनता:
पाचनवाला आम जनता की मूर्खता और उनकी निष्क्रियता पर भी व्यंग्य करता है। वह दिखाता है कि कैसे जनता अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति अनजान है और कैसे वे शासकों और अधिकारियों के भ्रष्टाचार को सहन करते हैं। इसका असली लक्ष्य जनता को जागरूक करना और उन्हें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित करना है।
व्यंग्य का असली लक्ष्य:
पाचनवाला के व्यंग्य का असली लक्ष्य समाज में व्याप्त बुराइयों, भ्रष्टाचार और अन्याय को उजागर करना है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इस चरित्र के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की है कि समाज के हर वर्ग में सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने जनता को यह सोचने पर मजबूर किया कि जब तक वे इन बुराइयों का विरोध नहीं करेंगे, तब तक समाज में न्याय और शांति स्थापित नहीं हो सकती। इसके अलावा, उन्होंने यह भी दिखाया कि एक जागरूक और विवेकशील समाज ही स्वस्थ और स्थिर शासन व्यवस्था की नींव रख सकता है।