1. "अंधेर नगरी" नाटक में मुझे सबसे अच्छा पात्र गोवर्धन बाबा (या गोविन्द बाबा) लगा। इसके कई कारण हैं: प्रज्ञा और विवेक: गोवर्धन बाबा एकमात्र पात्र हैं जो अपने विवेक और प्रज्ञा का प्रयोग करते हैं। वे सही और गलत का अंतर स्पष्ट रूप से समझते हैं और अपने शिष्यों को भी यही शिक्षा देते हैं। सत्य के प्रति निष्ठRead more

    “अंधेर नगरी” नाटक में मुझे सबसे अच्छा पात्र गोवर्धन बाबा (या गोविन्द बाबा) लगा। इसके कई कारण हैं:
    प्रज्ञा और विवेक: गोवर्धन बाबा एकमात्र पात्र हैं जो अपने विवेक और प्रज्ञा का प्रयोग करते हैं। वे सही और गलत का अंतर स्पष्ट रूप से समझते हैं और अपने शिष्यों को भी यही शिक्षा देते हैं।
    सत्य के प्रति निष्ठा: बाबा सत्य और धर्म के प्रति निष्ठावान हैं। वे अपने शिष्यों को “अंधेर नगरी” में जाने से मना करते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि वहां के राजा और प्रजा भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। उनका यह सतर्कता भाव और उनकी दृष्टि उन्हें एक आदर्श गुरु बनाती है।
    व्यंग्य और ह्यूमर: बाबा का चरित्र व्यंग्य और ह्यूमर से भरा हुआ है। वे अपनी बातें साधारण शब्दों में कहते हैं लेकिन उनमें गहरे अर्थ छिपे होते हैं। यह नाटक को और अधिक मनोरंजक और विचारणीय बनाता है।
    समर्पण और नेतृत्व: गोवर्धन बाबा अपने शिष्यों के प्रति समर्पित हैं। वे उनके भले के लिए हर संभव प्रयास करते हैं और उन्हें सही मार्ग पर ले जाने की कोशिश करते हैं।
    गोवर्धन बाबा का चरित्र न केवल नाटक में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है बल्कि यह हमें जीवन में सही निर्णय लेने और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है। यही कारण है कि मुझे यह पात्र सबसे अधिक प्रभावशाली और प्रेरणादायक लगता है।

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  2. भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाटक "अंधेर नगरी" अपने समय की शासन-व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य है। इसके माध्यम से उन्होंने तत्कालीन समाज और शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय और अराजकता को उजागर किया। यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु हैं जो इस व्यंग्य को स्पष्ट करते हैं: भ्रष्ट और मूर्ख शासक: नाटक का राजा एक मूर्ख औरRead more

    भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाटक “अंधेर नगरी” अपने समय की शासन-व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य है। इसके माध्यम से उन्होंने तत्कालीन समाज और शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय और अराजकता को उजागर किया। यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु हैं जो इस व्यंग्य को स्पष्ट करते हैं:
    भ्रष्ट और मूर्ख शासक:
    नाटक का राजा एक मूर्ख और भ्रष्ट शासक है, जो “अंधेर नगरी चौपट राजा” की अवधारणा को प्रकट करता है। राजा के आदेश और फैसले बिना किसी विवेक और न्याय के होते हैं। इससे भारतेंदु ने तत्कालीन शासकों की अविवेकपूर्ण और निरंकुश शासन-शैली की आलोचना की है।
    न्याय का अभाव:
    नाटक में दिखाया गया है कि कैसे न्याय व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। निर्दोष लोगों को सजा मिलती है और अपराधी बच जाते हैं। यह तत्कालीन न्याय व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार और पक्षपात को इंगित करता है।
    अराजकता और अव्यवस्था:
    “अंधेर नगरी” में सभी चीजें बिना किसी मूल्य और तर्क के समान कीमत पर बिकती हैं। इससे समाज में व्याप्त अराजकता और अव्यवस्था को दर्शाया गया है। इस तरह, भारतेंदु ने आर्थिक और सामाजिक असमानता की समस्या पर भी व्यंग्य किया है।
    जनता की दुर्दशा:
    जनता की स्थिति अत्यंत दयनीय है। वे शासक के अत्याचार और अन्याय के शिकार हैं, लेकिन उनके पास कोई सहारा नहीं है। इससे भारतेंदु ने जनता की दुर्दशा और उनके प्रति शासन की उदासीनता को उजागर किया है।
    साधुओं का प्रतीकात्मक विरोध:
    गोवर्धन बाबा और उनके शिष्य समाज के विवेकशील और जागरूक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका “अंधेर नगरी” में न जाने का निर्णय शासन और समाज में व्याप्त बुराइयों के प्रति उनका प्रतीकात्मक विरोध है। यह दर्शाता है कि सही सोच और विवेक रखने वाले लोग इस प्रकार की व्यवस्था में टिक नहीं सकते।
    भारतेंदु हरिश्चंद्र ने “अंधेर नगरी” के माध्यम से केवल मनोरंजन नहीं किया, बल्कि समाज और शासन के गहरे मुद्दों पर भी विचार किया। उन्होंने व्यंग्य के माध्यम से तत्कालीन शासन-व्यवस्था की कमजोरियों और भ्रष्टाचार को उजागर किया, जिससे दर्शक सोचने और सामाजिक सुधार की दिशा में प्रेरित होते हैं।

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  3. महंत गोवर्धन बाबा ने अंधेर नगरी में रहने के लिए मना इसलिए किया क्योंकि वहाँ की शासन-व्यवस्था और सामाजिक स्थिति बहुत ही भ्रष्ट और अराजक थी। "अंधेर नगरी चौपट राजा" कहावत का उपयोग करते हुए भारतेंदु हरिश्चंद्र ने यह दिखाया है कि ऐसी जगह पर जहां शासन अंधाधुंध हो और वस्तुएँ चाहे कितनी भी सस्ती क्यों न हो,Read more

    महंत गोवर्धन बाबा ने अंधेर नगरी में रहने के लिए मना इसलिए किया क्योंकि वहाँ की शासन-व्यवस्था और सामाजिक स्थिति बहुत ही भ्रष्ट और अराजक थी। “अंधेर नगरी चौपट राजा” कहावत का उपयोग करते हुए भारतेंदु हरिश्चंद्र ने यह दिखाया है कि ऐसी जगह पर जहां शासन अंधाधुंध हो और वस्तुएँ चाहे कितनी भी सस्ती क्यों न हो, वहाँ निवास करना खतरनाक और अविवेकपूर्ण होता है। यहाँ कुछ कारण हैं जिनकी वजह से महंत ने अंधेर नगरी में रहने से मना किया:
    अन्यायपूर्ण शासन:
    अंधेर नगरी का राजा न्याय और विवेक के बिना शासन करता है। उसका शासन अनुचित और अव्यवस्थित है। महंत जानते थे कि ऐसे शासन में किसी भी समय निर्दोष लोगों को भी गलत सजा मिल सकती है।
    अराजकता और अस्थिरता:
    नगर की अव्यवस्थित स्थिति और वस्तुओं का एक समान मूल्य दर्शाता है कि वहाँ की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है। ऐसी अराजकता में जीवन सुरक्षित नहीं होता और कोई भी कभी भी अनायास संकट में पड़ सकता है।
    विवेक और प्रज्ञा की कमी:
    महंत गोवर्धन बाबा एक विवेकशील व्यक्ति हैं और अपने शिष्यों को भी सही दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। अंधेर नगरी में शासन और समाज में विवेक और प्रज्ञा की पूरी तरह से कमी है, जिससे महंत वहाँ के वातावरण को अनुचित और असुरक्षित मानते हैं।
    स्वस्थ जीवन की असंभवता:
    वस्तुओं का सस्ता होना एक सतही लाभ है, लेकिन जब तक समाज और शासन प्रणाली स्थिर और न्यायपूर्ण नहीं होगी, तब तक वहाँ स्वस्थ और सुरक्षित जीवन संभव नहीं है। महंत इस बात को समझते हैं और इसलिए उन्होंने अपने शिष्यों को भी वहाँ रहने से मना किया।
    लोगों की दुर्दशा:
    महंत ने देखा कि अंधेर नगरी के लोग राजा के अनुचित शासन के कारण अत्यंत पीड़ित हैं। ऐसी स्थिति में वहां रहना विवेकपूर्ण नहीं होता, क्योंकि वहाँ किसी भी समय कुछ भी अप्रत्याशित और हानिकारक हो सकता है।
    भारतेंदु हरिश्चंद्र ने महंत गोवर्धन बाबा के माध्यम से यह संदेश दिया है कि केवल सस्ती वस्तुएँ या भौतिक लाभ ही जीवन में महत्वपूर्ण नहीं होते। न्याय, विवेक, और सामाजिक स्थिरता अधिक महत्वपूर्ण हैं, और इनके बिना जीवन सुरक्षित और सुखी नहीं हो सकता।

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  4. "अंधेर नगरी" नाटक में फेरीवालों की बातों से उस समय की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था का एक स्पष्ट और विडंबनापूर्ण चित्रण प्रस्तुत होता है। फेरीवालों की बातचीत से निम्नलिखित प्रकार का वातावरण अभिव्यक्त होता है: अराजकता और अव्यवस्था: फेरीवाले अपनी वस्तुओं को बेचते समय जोर-जोर से चिल्लाते हैं, जिससे स्पष्टRead more

    “अंधेर नगरी” नाटक में फेरीवालों की बातों से उस समय की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था का एक स्पष्ट और विडंबनापूर्ण चित्रण प्रस्तुत होता है। फेरीवालों की बातचीत से निम्नलिखित प्रकार का वातावरण अभिव्यक्त होता है:
    अराजकता और अव्यवस्था:
    फेरीवाले अपनी वस्तुओं को बेचते समय जोर-जोर से चिल्लाते हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि बाजार में कोई अनुशासन या व्यवस्था नहीं है। सब कुछ अस्त-व्यस्त है और कोई भी नियम-कानून का पालन नहीं कर रहा है।
    मूल्य का समानता:
    फेरीवालों की बातों से पता चलता है कि अंधेर नगरी में सभी वस्तुएँ एक ही कीमत पर बेची जा रही हैं, चाहे वह सस्ती हो या महंगी। इससे यह स्पष्ट होता है कि वहां की आर्थिक प्रणाली पूरी तरह से बिगड़ी हुई है और मूल्य निर्धारण का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है। यह आर्थिक असमानता और अव्यवस्था को दर्शाता है।
    भ्रष्टाचार और विवेकहीनता:
    वस्तुओं के मूल्य निर्धारण में कोई तर्क या विवेक नहीं है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वहां का शासन और समाज दोनों ही भ्रष्ट और विवेकहीन हैं। यह भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता का प्रतीक है।
    अत्यधिक प्रतिस्पर्धा और अस्त-व्यस्त व्यापारिक वातावरण:
    फेरीवाले अपनी वस्तुओं को बेचने के लिए जोर-जोर से चिल्लाते हैं और ग्राहकों को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि वहाँ अत्यधिक प्रतिस्पर्धा है और व्यापारिक वातावरण बहुत ही अस्त-व्यस्त और अशांत है।
    मूर्खता और अनजानेपन का माहौल:
    फेरीवालों की बातों और उनके व्यवहार से यह भी प्रतीत होता है कि वहाँ के लोग मूर्खता और अनजानेपन में जी रहे हैं। वे वस्तुओं के वास्तविक मूल्य और उनके महत्व को नहीं समझते, और अराजक स्थिति में जी रहे हैं।
    आकर्षण का भ्रम:
    फेरीवालों की बातें सुनकर शिष्य इतने प्रभावित हो जाते हैं कि वे सोचते हैं कि यह एक अद्भुत स्थान है, जहाँ सब कुछ सस्ता और सुलभ है। लेकिन गोवर्धन बाबा की दृष्टि में यह केवल एक भ्रम है और वास्तविकता में यह नगर खतरे से भरा हुआ है।

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  5. "अंधेर नगरी" नाटक को लिखने के पीछे भारतेंदु हरिश्चंद्र का उद्देश्य तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक व्यवस्था की बुराइयों और विडंबनाओं को उजागर करना था। भारतेंदु ने इस नाटक के माध्यम से कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला। उनके उद्देश्य निम्नलिखित बिंदुओं में स्पष्ट किए जा सकते हैं: भ्रष्ट शासनRead more

    “अंधेर नगरी” नाटक को लिखने के पीछे भारतेंदु हरिश्चंद्र का उद्देश्य तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक व्यवस्था की बुराइयों और विडंबनाओं को उजागर करना था। भारतेंदु ने इस नाटक के माध्यम से कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला। उनके उद्देश्य निम्नलिखित बिंदुओं में स्पष्ट किए जा सकते हैं:
    भ्रष्ट शासन व्यवस्था की आलोचना:
    नाटक में “अंधेर नगरी चौपट राजा” की अवधारणा के माध्यम से भारतेंदु ने उस समय के शासकों की भ्रष्ट और अव्यवस्थित शासन प्रणाली की आलोचना की है। वे दिखाते हैं कि कैसे एक मूर्ख और विवेकहीन शासक अपनी प्रजा को अराजकता और अन्याय में धकेल देता है।
    न्याय व्यवस्था की कमजोरियाँ:
    नाटक में दिखाया गया है कि न्याय व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है। निर्दोष लोगों को सजा मिलती है और अपराधी बचे रहते हैं। यह तत्कालीन न्याय प्रणाली की विफलता और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करता है।
    सामाजिक विडंबना और अराजकता:
    अंधेर नगरी में सभी वस्तुएँ एक ही कीमत पर बिकती हैं, चाहे वे कितनी भी मूल्यवान या सस्ती क्यों न हों। इससे समाज में व्याप्त आर्थिक अराजकता और मूल्य निर्धारण की तर्कहीनता को दर्शाया गया है।
    जनता की दुर्दशा:
    नाटक में जनता की स्थिति अत्यंत दयनीय दिखाई गई है। वे शासक के अत्याचार और अन्याय के शिकार हैं। इससे भारतेंदु ने दिखाया कि कैसे भ्रष्ट शासन प्रणाली जनता की पीड़ा का कारण बनती है।
    व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक सुधार:
    भारतेंदु ने व्यंग्य का प्रयोग करके समाज और शासन में व्याप्त बुराइयों को उजागर किया। उनके उद्देश्य थे लोगों को सोचने पर मजबूर करना और सामाजिक सुधार के प्रति प्रेरित करना। वे चाहते थे कि लोग इन बुराइयों को समझें और समाज में सुधार के लिए प्रयास करें।
    सच्चाई और विवेक का महत्व:

    गोवर्धन बाबा के चरित्र के माध्यम से भारतेंदु ने सच्चाई, विवेक और प्रज्ञा का महत्व बताया। वे दिखाते हैं कि केवल भौतिक वस्तुएँ और सस्ता सामान जीवन में महत्वपूर्ण नहीं होते, बल्कि सही सोच, न्याय और स्थिरता अधिक महत्वपूर्ण हैं।
    राष्ट्रीय और सामाजिक जागरूकता:
    भारतेंदु का उद्देश्य था राष्ट्रीय और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देना। वे चाहते थे कि लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत हों और भ्रष्ट और अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ आवाज उठाएं।

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