NIOS Class 10 Hindi Chapter 18
गांधी जी ने मानव-जाति के लिए ऐसे सुखों को श्रेष्ठ माना, जो आत्मिक और नैतिक विकास पर आधारित हों। उनके अनुसार, सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं या भौतिक संपत्ति से नहीं, बल्कि आत्मा की शांति और समानता से प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा कि “खुशी तब मिलेगी, जब आप जो सोचते हैं, जो कहते हैं, और जो करते हैं, उसमें सामंजस्य हो”। इस विचार से स्पष्ट होता है कि गांधी जी का सुख का सिद्धांत आंतरिक संतोष और सच्चाई पर केंद्रित था, न कि भौतिक उपभोग पर।
(क) गांधी जी उन सुखों को मानव-जाति के लिए श्रेष्ठ मानते थे जो आत्मिक और नैतिक उन्नति से जुड़े होते हैं। उनके विचार में सच्चा सुख भौतिक संपत्ति या ऐश्वर्य में नहीं, बल्कि सत्य, अहिंसा, और आत्म-संयम में निहित है। गांधी जी का मानना था कि वास्तविक सुख सादगी, संयम, और स्वावलंबन में है, जो मनुष्य को आंतरिक शांति और संतोष प्रदान करता है। उनके अनुसार, बाहरी सुख क्षणिक होते हैं और मनुष्य को भटकाते हैं, जबकि आंतरिक सुख स्थायी और सार्थक होते हैं।
(ख) हाँ, मैं गांधी जी से सहमत हूँ। तर्क यह है कि बाहरी सुख, जैसे भौतिक संपत्ति, शक्ति, और ऐश्वर्य, अस्थायी होते हैं और उन्हें प्राप्त करने के बाद भी मनुष्य का मन संतुष्ट नहीं होता। इसके विपरीत, आंतरिक सुख, जो आत्म-संयम, नैतिकता, और सादगी से प्राप्त होते हैं, स्थायी और संतोषजनक होते हैं। उदाहरण के रूप में, एक व्यक्ति जिसने अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना और सादगी को अपनाना सीख लिया है, वह छोटी-छोटी बातों में भी खुशी पा सकता है और जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होता है। इसके अलावा, ऐसे आंतरिक सुख से न केवल व्यक्तिगत स्तर पर शांति मिलती है, बल्कि यह समाज में भी सौहार्द और सामंजस्य को बढ़ावा देता है। इस प्रकार, आत्मिक और नैतिक सुख ही वास्तविक और स्थायी सुख होते हैं, जो मानव-जाति के लिए श्रेष्ठ हैं।